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पत्र: रॉलैंड जे॰ वाइल्डको

और उनकी सेवावृत्तिके उपयुक्त भी होगा कि वे सेवासदनमें रहकर वहाँ कुछ काम करें या फिर प्रोफेसर कर्वेके विश्वविद्यालयमें―यानी उन्हें जो भी पसन्द आये या जहाँ भी स्थान मिल सके―रहें। इसलिए मैं चाहूँगा कि आप श्रीमती उर्मिला-देवीके साथ उनके कुछ कर सकनेकी सम्भावनाओंपर बातचीत करें और अन्य बातोंमें भी उन्हें परामर्श दें। बेशक, वे आपसे यह तो नहीं ही कहना चाहतीं कि अगर उन्हें सेवासदनमें वाजिब तौरपर जगह नहीं मिल सकती तो आप उनके लिए कोई खास इन्तजाम करें। अगर उन्होंने उस संस्था में रहना तय किया तो वे ऐसा महसूस करना चाहेंगी कि वे सचमुच वहाँ कुछ काम कर सकती हैं।

पहले तो मैंने सोचा था कि प्रोफेसर कर्वेको अलगसे एक पत्र लिखूँ। लेकिन यह पत्र लिखाते समय यह विचार आया कि सिर्फ यही लिखा दूँ और प्रोफेसर कर्वेसे श्रीमती उर्मिलादेवीको मिलानेका काम आपपर छोड़ दूँ। वे खुद ही दोनों संस्थाओंको देख लें और अगर उन्हें दोनोंमें जानेकी सुविधा प्राप्त हो तो खुद ही तय कर लें कि किसमें जाना है। और मैंने सेवासदनके बारेमें जो-कुछ कहा है, वह सब स्वभावतः प्रोफेसर कर्वेके आश्रमपर भी लागू होता है।

मैं श्रीमती उर्मिलादेवीको बहुत वर्षोंसे बहुत निकटसे जानता हूँ और मुझे मालूम है कि वे कुछ सेवा करनेको कितनी उत्सुक हैं।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५४४) की फोटो-नकलसे।

 

३७९. पत्र: रॉलेंड जे॰ वाइल्डको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
७ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र पाकर बड़ी खुशी हुई। श्री विलसन साबरमती नहीं आ सके―इसका मुझे दुःख है। आज रविवार है, इसलिए मैं कल आपको एक तार भेज रहा हूँ, जो इस प्रकार है:

"आपका पत्र मिला। आपका हर समय स्वागत है। ज्यादा ठीक होगा यदि आप बारडोली जाने से पहले अहमदाबाद पहुँचें। पत्र भेज रहा हूँ।"

मैं पूरे महीने आश्रम में रहूँगा―ऐसी आशा है। इसलिए आप जब भी चाहें, आ सकते हैं। आपको शायद मालूम ही होगा कि सोमवारको मेरा मौन-व्रत रहता है।

पता नहीं, आप हमारे साथ आश्रममें ठहरना पसन्द करेंगे या नहीं। आप जानते ही होंगे कि आश्रम में हम लोग अत्यन्त ही साधारण भोजन करते हैं और आपको यहाँका जीवन भी शायद बहुत ही सादा लगेगा। पर यदि आप आश्रमके