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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जीवनमें घुल-मिल सकें तो आपको अपने बीच पाकर हम सबको सचमुच बहुत ही खुशी होगी।

मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि बारडोली जाने से पहले आश्रम आना आपके लिए ज्यादा अच्छा रहेगा।

हृदयसे आपका,

श्री रॉलैंड जे॰ वाइल्ड
सहायक सम्पादक, ‘पायोनियर’
इलाहाबाद

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४४६३) की माइक्रोफिल्म से।

 

३८०. पत्र: मीराबहनको

सोमवार, ८ अक्टूबर, १९२८

चि॰ मीरा,

तुम्हारे पत्र नियमित रूप से मिलते रहे हैं। तुम पत्रोंके विस्तारकी चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारे और तुम्हारे कामके बारेमें सभी-कुछ जान लेना चाहता हूँ। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी होती है कि तुम खुश और भली-चंगी हो और सभी प्रकारके अनुभव स्वयं प्राप्त कर रही हो। मैं इस बात से खुश हुआ कि तुम जेठालालके साथ कड़ाईसे पेश आई। यदि वह अपने वचनका पालन करता रहे तो अच्छी बात होगी।

आश्रम अब नये परिवर्तनका अभ्यस्त होता जा रहा है। वैसे अभी यह नहीं कहा जा सकता कि परिणाम कैसा रहेगा। मसालेदार और सादी दो तरहकी रसोई पकाना आजसे शुरू हो गया है। मुझे मालूम नहीं कि इन दोनों वर्गोंमें कितने-कितने सदस्य हैं।

अब बादल छँट जाने से दिन में बहुत गरमी रहने लगी है।

आस्ट्रियासे आये मित्रोंने[१] अब रुई धुनना सीख लिया है और उनका आग्रह है कि उनकी बनाई सारी पूनियाँ मैं खुद ही देखूँ। इससे कामका भार फिर काफी बढ़ गया है। छोटेलाल मलेरियामें पड़ गया था। अब वह पहलेसे अच्छा है और उसे थोड़ा-बहुत काम करनेकी इजाजत मिल गई है। विमलाको फिरसे ज्वर आने लगा है।

स्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१२) से। सौजन्य: मीराबहन; जी॰ एन॰ ८२०२ से भी।

 

 
  1. फ्रेडरिक तथा फ्रैंसिस्का स्टैंडेनेथ।