पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३९१

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३८१. पत्र: मीराबहनको

८ अक्टूबर, १९२८

चि॰ मीरा,

अलमोड़ाके पतेपर तुमको पत्र[१] लिख चुकनेके बाद तुम्हारा तार मिला। लेकिन मैं उस पत्रको पहलेवाले पतेपर ही जाने दे रहा हूँ। पत्र काफी विस्तृत तो है, पर उसमें कोई खास बात नहीं है।

यहाँ अभी मलेरियाका जोर है। छोटेलालकी ‘बेकरी’ तैयार हो चुकी है। वह तरह-तरह के प्रयोग करता रहा है।

स्नेह।

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३११) से। सौजन्य: मीराबहन; जी॰ एन॰ ८२०१ से भी।

 

३८२. पत्र: वी॰ ए॰ सुन्दरम्को

८ अक्टूबर, १९२८

प्रिय सुन्दरम्,

अपनी माताका संसारसे विदा होना किसीको भी अच्छा नहीं लगता, पर मैं तुमको अपना शोक-सन्देश नहीं भेज रहा हूँ। तुम्हारी माताजी अपने मनमें यह सुख-सन्तोष लेकर संसारसे विदा हुई कि उन्होंने पाल-पोसकर नेक और कर्त्तव्यपरायण सन्तान तैयार की और धर्मनिष्ठ जीवन बिताया। उनकी-जैसी मृत्यु तो ईर्ष्याकी वस्तु है। आशा है, तुम दोनों स्वस्थ होगे।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ ३२०८) की फोटो-नकलसे।

 
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