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३८३. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

लिखाने के बाद पढ़ा नहीं

८ अक्टूबर, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

मैं बहुत थक गया हूँ और कामके बोझसे दबा हुआ हूँ। बकाया काम दिन-दिन बढ़ते ही जाते हैं, जिससे मुझे बड़ी चिन्ता होती है। इसीलिए आपको उत्तर देने में देर हो गई।

मैं हेमप्रभादेवी और तारिणीके बारेमें कोई रास्ता निकालने के लिए चिन्तित था। इसी बीच आपका यह पत्र आया, जिसमें आपने यह चर्चा की है कि उनकी क्या व्यवस्था की जाये। मैं उन्हें आश्रममें लेने में संकोच कर रहा था; क्योंकि मुझे मालूम था कि पिछली बार यह हेमप्रभादेवीको रास नहीं आया था। और कोई दूसरी जगह मुझे सूझी नहीं। तारिणीको भी वर्धा में कुछ अच्छा तो नहीं लगा था। बंगालमें या उसके आसपास ही किसी स्थानके बारेमें सोचना चाहिए। अब भी मैं इस सम्बन्धमें कोई प्रगति नहीं कर पाया हूँ।

अगर दोनोंका कोमिल्ला जा सकता सम्भव होता तो मुझे कितनी खुशी होती। मैं आपसे अभय आश्रमको पूरी तरह अपने काबू में ले लेने की अपेक्षा रखता हूँ, भले ही उसके कारण प्रतिष्ठानका नुकसान हो या उसे बन्द हो जाना पड़े। सिर्फ इतना ध्यान रखना है कि क्षति उठाई जाये अथवा अपने अस्तित्वको उत्सर्ग किया जाये तो वह मजबूरीके कारण यन्त्रवत् नहीं, बल्कि सोच-समझकर स्वेच्छापूर्वक किया जाये। मेरे मनमें ये विचार उत्कलके बारेमें कही आपकी बातों परसे उठे हैं। जहाँ-तक मैं देख सकता हूँ, खादीकी प्रगति के साथ-साथ उससे सम्बन्धित बहुत-से संगठन स्थापित होते चले जायेंगे। उसके विकास की यह एक शर्त है। लेकिन केन्द्रीय अथवा मुख्य प्रान्तीय संगठनको ऐसा रास्ता अपनाना है जिससे अपने चारित्र्य और योग्यताके बलपर यह सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर सके और सभी उसे सम्मानकी दृष्टि से देखें। प्रतिष्ठानकी एक कठिनाई यह है कि इसके पास अधिक संख्या में आत्मत्यागी स्वयंसेवक नहीं हैं। यह खुद आपका लालन-पालन जिस ढंग से हुआ है, उसीका परिणाम है। खुद आपका त्याग बहुत बड़ा था और इसलिए आपने केमिकल वर्क्समें जो वातावरण तैयार किया था उसमें से बहुत कम लोगोंको आप अपने साथ ला पाये। आपके जीवन में अचानक हुआ यह परिवर्तन छोटे-छोटे पौधों―सामान्य लोगों―को तभी छाया दे सकता था जब उसकी जड़ें जम जातीं और वह एक विशाल वृक्षका रूप ले लेता। वह तो आपने अब शुरू किया है। मुझे अतराईमें आपके साथ हुई वह बातचीत याद है जिसमें आपने बताया था कि आपने किस तरह स्वयं-सेवकोंको अलग करके वैतनिक लोगोंको रखा और अकाल-सहायता के कार्यको उनके