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पत्र: छोटालाल तेजपालको

बलपर सफल बनाया। अगर आपका विकास दूसरे ढंगसे हुआ होता तो आप स्वयं-सेवकोंके बलपर ही उस कामको सफल बनाते। अहिंसाकी सफलता स्वयंसेवी कार्य-कर्ताओंके सफल संगठनपर निर्भर है। और खादी एक काफी व्यापक पैमानेपर अहिंसाको ही कार्यरूप देने का प्रयत्न है। अगर हममें पर्याप्त धैर्य और तपस्याका बल है तो हम अवश्य सफल होंगे।

आशा है, आप मेरी बात समझ गये होंगे। इस पत्रको पढ़कर आपको परेशान या निराश नहीं होना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि यह आपमें भावी कठिनाइयोंको झेलनेके लिए ताजगी भरे। मैं आपको प्रेरणा और उत्साह दिलानेके लिए ही लिख रहा हूँ। जब शुरू किया था तो नहीं सोचा था कि यह कितना बड़ा होगा या इसमें क्या-कुछ कहूँगा।

उत्कलसे हम यह सीख लें कि किसी निश्चित कार्यक्रमके सम्बन्धमें डॉ॰ राय पर निर्भर नहीं करना चाहिए। उनसे खादीके लिए बराबर प्रयत्न करते रहने की अपेक्षा करना ठीक नहीं। वे तरह-तरहके कार्योंमें व्यस्त रहते हैं, उनके पास समय बहुत कम रहता है और फिर अब वे कोई जवान तो रहे नहीं। आश्चर्य तो यही है कि वे दौरे आदिके लिए अब भी सुलभ हो जाते हैं।

हेमप्रभादेवी और तारिणीको फिर गिरीडीह ही क्यों न भेज दिया जाये? आपको उन्हें स्वास्थ्यप्रद जलवायुमें ही भेजना चाहिए।

सस्नेह,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३७०१ ) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३८४. पत्र: छोटालाल तेजपालको

९ अक्तूबर, १९२८

भाईश्री छोटालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारी पुस्तक नहीं मिली। मिलनेपर मैं उसे देख जाऊँगा। श्री क्लेटनको प्रागजी देसाई (बॉक्स नं॰ ५३९०, जोहानिसबर्ग) का पता भेज देना ताकि मुझे लिखना न पड़े।

मोहनदासके वंदेमातरम्

श्री छो॰ तेजपाल


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राजकोट

गुजराती (जी॰ एन॰ २५८७) की फोटो-नकलसे।