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३८५. पत्र: रेहाना तैयबजीको

आश्रम, साबरमती
१० अक्टूबर, १९२८

प्रिय रेहाना,

तुम्हारा पत्र[१] मिला। पाशाभाईने भी इसीके बारेमें लिखा है। मैं समझता हूँ कि इतनी छोटी-सी बातको लेकर तुमको चिन्तित नहीं होना चाहिए। तुमको इसे अपने दिमागसे बिलकुल ही निकाल देना चाहिए।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ ९६१०) की फोटो-नकलसे।

 

३८६. पत्र: गिरधारीलालको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१० अक्टूबर, १९२८

प्रिय लाला गिरधारीलाल,

आपको इस महिलाके[२] बारेमें क्या कोई जानकारी है?

हृदयसे आपका

लाला गिरधारीलाल,
लाहौर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३२८०) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. दिनांक ५ अक्टूबरका। अब्बास तैथवजीकी पुत्री रेहानाने बड़ौदा में एक यूथ लोग संगठित को थी। एक अन्य महिला उसको अध्यक्षा चुनी गई थीं। बादमें सदस्योंने अध्यक्षा के किसी कामसे असहमति प्रकट की और उनसे शिष्टतापूर्वक उसकी सफाई देने को कहा। इसपर अध्यक्षाने उनको कुछ बुरा-भला कह दिया था। कुछ सदस्य उसके बरताव के बारे में समाचारपत्रों में लिखना चाहते थे। रेहाना ऐसा कदम उठानेमें संकोच कर रही थीं और उन्होंने गांधीजी से सलाह मांगी थी। (एस॰ एन॰ १३५४२)।
  2. इस पत्र के साथ एक पत्रिका में प्रकाशित कैथेरीनकी कहानी―‘विडो’ (विधवा)―संलग्न थी। १९२१ में विदेशी वस्त्रोंके बहिष्कार आन्दोलनके दौरान सीता नामक एक गरीब विधवाके पास केवल एक विदेशी साड़ी थी। उसे यह भय दिखाया गया कि विदेशी वस्त्र पहननेसे उसे कोढ़ हो जायेगा। बादमें कोढ़के भय और वस्त्रहीन रहनेकी विवशतासे दुःखी होकर उसने गलेमें फन्दा लगाकर आत्महत्या कर ली।