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ईश्वर है

 

मैं ईश्वरपर विश्वास लाना चाहता हूँ, लेकिन मुझे ऐसे विश्वासका कोई आधार नहीं मिलता। कृपया ‘यंग इंडिया’ के पृष्ठोंके जरिये मुझे प्रकाश दिखाइए और मेरी अनास्थाको आस्थामें बदल दीजिए।

यह तर्क उतना ही पुराना है जितना कि मानव। मेरे पास इसका कोई बिलकुल मौलिक उत्तर भी नहीं है। फिर भी, मैं यह बतलानेकी कोशिश करूँगा कि मैं ईश्वरमें विश्वास क्यों करता हूँ। यह बतलाने की प्रेरणा मुझे इस जानकारीसे मिली है कि अनेक नवयुवक मेरे विचारों और मेरे कामोंमें दिलचस्पी लेते हैं।[१]

एक ऐसी अव्यक्त, अपरिभाषित, रहस्यमयी शक्ति अवश्य है, जो विश्वके कण-कण में व्याप्त है। मुझे उसकी प्रतीति होती है, हालाँकि मैं उसे देख नहीं पाता। यही वह अदृश्य शक्ति है जिसके प्रभावका अनुभव तो होता है पर वह किसी भी प्रमाणकी पकड़में नहीं आती। क्योंकि मैं अपनी इन्द्रियोंके जरिये जिन चीजोंका अनुभव कर पाता हूँ, वह उन सबसे सर्वथा भिन्न है। वह अतीन्द्रिय है।

लेकिन एक सीमातक ईश्वरके अस्तित्वको सिद्ध करना सम्भव है। संसार के सामान्य कार्योंमें भी लोगोंको यह जानकारी तो नहीं रहती कि यह सब-कुछ किसके चलाये चल रहा है और वह क्यों और किस ढंग से संसारका नियमन करता है, परन्तु इतना वे निश्चित तौरपर समझते हैं कि कोई शक्ति है अवश्य जो संसारका संचालन कर रही है। पिछले वर्ष मैसुरके अपने दौरेमें मैंने अनेक निर्धन ग्रामीणोंसे बातचीतके दौरान पाया कि उनको यह भी नहीं मालूम था कि मैसूरका शासक कौन है। उन्होंने इतना ही उत्तर दिया कि कोई देवता शासन करता है। यदि वे गरीब लोग अपने शासकके बारेमें इतना कम जानते थे तो फिर मेरी क्या विसात? अपने शासककी तुलनामें वे जितने छोटे हैं, मैं तो ईश्वरकी तुलनामें उससे न जाने कितना छोटा हूँ। इसलिए यदि मैं ईश्वरके अस्तित्वको, सम्राटोंके सम्राट्के अस्तित्वको, महसूस न कर पाऊँ तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात? फिर भी मैं इतना महसूस करता हूँ―जैसे कि वे ग्रामीण मैसूरके बारेमें महसूस करते थे―कि ब्रह्माण्डमें एक व्यवस्था है, एक अटल नियम विश्वकी प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक प्राणीका नियमन कर रहा है। वह नियम अंधा नहीं है, क्योंकि कोई भी अन्धा या विवेकशून्य नियम जीवधारी प्राणियोंके आचरणका नियमन नहीं कर सकता। और अब तो सर जगदीशचन्द्र बसुकी आश्चर्यजनक खोजोंके आधारपर सिद्ध किया जा सकता है कि पदार्थतक जीवमय है। इस प्रकार विश्वके समस्त जीवनका नियमन करनेवाला नियम ही ईश्वर है। नियम और नियामक एक ही हैं। चूँकि मैं उस नियम या नियामक―ईश्वर―के बारेमें इतना कम जानता हूँ, इसीलिए मुझे उसके अस्तित्वको मानने से इनकार तो नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार किसी भौतिक शक्तिको माननेसे मेरे इनकार करने या उसके

  1. इसके बाद जो पाठ दिया जा रहा है वह, अन्तिम वाक्य और न्यूमैनकी पंक्तियोंको छोड़कर, कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी, लन्दन द्वारा २० अक्टूबर, १९३१ को रिकार्ड किया गया था जबकि गांधीजी किंग्सले हॉलमें ठहरे हुए थे।