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३८९. पत्र: खुर्शेद नौरोजीको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ अक्टूबर, १९२८

तुम्हारा लम्बा-चौड़ा खत मिला। मुझे इस बातकी बेहद खुशी है कि तुमने मुझे इतनी तफसीलके साथ लिखा। नाउम्मीद होनेकी तो कोई वजह दिखाई नहीं पड़ती। तुम्हारा काम नया-नया है, इसलिए उसमें वक्त लग सकता है। लेकिन मैं चाहता हूँ कि अगर तुमसे बन सके तो तुम भारतीय संगीतका एक और हुनर अपने अन्दर पैदा कर लो।

यहाँ जरूर आओ और आश्रममें कुछ दिन बिताओ। अगर तुम आश्रमकी जिन्दगीको अपना सको तो इससे बढ़िया बात और क्या होगी? लेकिन मैं जानता हूँ कि तुम्हारे लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल पड़ेगा।

आजकल यहाँ एक आस्ट्रियाई दम्पती है। पत्नी कण्ठ-संगीत और वाद्य संगीत, दोनों ही जानती हैं। वे काफी हुनरमन्द लगती हैं। वे अंग्रेजी भाषा जैसे-तैसे ही बोल पाती हैं। वे भजन-संगीतकी बेहद शौकीन हैं। मेरी बड़ी इच्छा है कि तुम उनसे मिलतीं और उनका संगीत सुनतीं।

कुमारी खुर्शेद नौरोजी,
नेपियन सी रोड, मलावार हिल, बम्बई

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५४६) की फोटो-नकलसे।

 

३९०. पत्र: जुगलकिशोरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
११ अक्टूबर, १९२८

प्रिय जुगलकिशोर,

आपका पत्र बहुत दिनोंतक मेरी फाइलमें ही लगा रहा, लेकिन मैं समय निकाल ही नहीं पाया। आज जब कि सभी लोग कताईमें लगे हुए हैं और मुझे भी नित्यप्रतिसे काफी अधिक समयतक कताई करनी है, शेष पड़े हुए पत्रोंको निबटानेका थोड़ा समय मिल गया है।

आपकी योजना अच्छी तो है, पर आवश्यकता से अधिक उच्चाकांक्षी लगती है। आपका प्रस्ताव है कि विवाहितोंको ७५ रुपये और अविवाहितोंको ३० रुपये दिये जायें। मेरा खयाल है कि आपको यह अन्तर नहीं रखना चाहिए, दोनोंके लिए समान व्यवस्था करनी चाहिए। आप कह सकते हैं कि आप विवाहितोंके मामले में