पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४०४

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३९६. पत्र: रूपनारायण श्रीवास्तवको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१२ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, धन्यवाद। स्पष्ट है कि हम एक ही चीजको परस्प विरोधी दृष्टिकोणोंसे देख रहे हैं। आपका विचार है कि आत्मरक्षा के प्रयत्नमें किसीको मार डालना हिंसा नहीं है, जबकि बछड़ेके ही भलेके लिए―चाहे बादमें यह निष्कर्ष गलत ही ठहरे―उसे मार देना आपकी नजरमें हिंसा है। मुझे नहीं दिखाई पड़ता कि इसमें हम दोनों कहीं भी एक-दूसरेसे सहमत हो सकेंगे। मैं तो साँपको मारना भी हिंसा ही समझता हूँ। भले ही मैं साँपसे भय खाकर उसे मारनेके लिए विवश हो जाऊँ, पर इससे हिंसाके उस कार्यमें तो किसी तरह भी कोई कमी नहीं आयेगी।

हृदय से आपका,

श्रीयुत रूपनारायण श्रीवास्तव
मार्फत―सेठ जमनादास, एम॰ एल॰ ए॰
जबलपुर (म॰ प्रा॰)

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५५१) की फोटो-नकलसे।

३९७. पत्र: एस॰ सुब्रह्मण्यम्को

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१२ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपका इतना आग्रह था, इसलिए मैं सैण्डिल और धोती आपको भेज रहा हूँ और आपके दानकी राशिमें से इनका डाकखर्च काट रहा हूँ।

अच्छी किस्मकी साड़ियाँ और धोतियाँ आपको खादी-भण्डार, प्रिंसेज स्ट्रीट, बम्बईसे मिल सकती हैं। मैं नहीं समझता कि वी॰ पी॰ भेजने और मँगानेकी व्यवस्था हमारे देश और मलायाके बीच है। इसलिए आपको उनके पास नकद राशि भेजनी पड़ेगी, तभी वे ऑर्डरका माल भेज सकेंगे।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एस॰ सुब्रह्मण्यम्
गवर्नमेंट इंग्लिश स्कूल
सेगामट, जोहोर
मलाया

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५५२) की माइक्रोफिल्मसे।