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३९८. पत्र: आइजक सान्त्राको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१२ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, धन्यवाद। पुस्तिका मिलनेपर मैं उसे अवश्य पढुँगा। लेकिन मैं इस तरहके काम अपने ही ढंगसे करना पसन्द करता हूँ। अभी इस समय मैं साम्राज्य द्वारा किये जानेवाले किसी भी काममें शरीक नहीं होना चाहता, क्योंकि मुझे साम्राज्यपर अविश्वास है।

हृदयसे आपका,

श्री आइजक सान्त्रा
मुख्य अधिकारी
कुष्ठ सर्वेक्षण
मार्फत―पोस्ट मास्टर, जामनेर
पूर्वी खानदेश

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५५३) की माइक्रोफिल्म से।

३९९. पत्र: मीराबहनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१२ अक्टूबर, १९२८

प्रभुदासके यहाँ पहुँचने से पहले ही तुम्हारा पत्र मुझे मिल गया। यह देखकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि तुमको यात्रा आनन्ददायक लग रही है और तुम उसके बारे में इतने प्रफुल्लित मनसे लिख रही हो। मैं चाहता हूँ कि तुम यात्रा से भरपूर स्फूर्ति और प्रफुल्लित मन लेकर लौटो।

आश्रम में शीतके आगमनके लक्षण दिखने लगे हैं। अब रातें काफी ठण्डी होने लगी हैं और काफी कुछ ओढ़ना पड़ता है। आश्रममें मलेरिया भी जोर पकड़ता जा रहा है। राजकिशोरी और शारदा भी ज्वरकी चपेटमें आ गई है। चिमनलाल और छोटी शारदा तो पिछले तीन दिनसे पड़े ही हैं।

कल मजदूरों-सहित आश्रमके सभी लोगोंने परिपाटीके अनुसार एक साथ बैठकर फलोंका भोजन किया। हम लोगोंकी संख्या ३०० से ऊपर थी। भोजनमें खजूर, मूँगफली, केले और किशमिश थे।

मूल अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१३) से। सौजन्य: मीराबहन; जी॰ एन॰ ८२०३ से भी।