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पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

स्वभावतः उन लोगोंका ध्यान―जैसा कि उचित था―उस ओर अधिक चला गया जो अन्यथा मगनलाल स्मारकके लिए अधिक उदारतासे चन्दा देते। इसलिए चन्दे बहुत धीरे-धीरे आ रहे हैं।

हॉलैंडका सुन्दर पोस्टकार्ड मुझे मिल गया।

आश्रम में सब-कुछ ठीक-ठीक चल रहा है। उसमें इन दिनों काफी परिवर्तन किये जा रहे हैं। परिवर्तनोंकी रूपरेखा पूरी तरह स्पष्ट हो जानेपर आपको ‘यंग इंडिया’ के जरिये उनकी जानकारी मिल जायेगी। मीरा कताई-क्षेत्रोंके दौरेपर गई है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि वह जिन-जिन गाँवोंमें जाती है वहाँ अपने-आपको कितनी अच्छी तरह रमा लेती है। उसने जो हिन्दी सीखी थी, वह अब काफी काम आ रही है।

आस्ट्रियाई दम्पति आजकल यहीं है। बहुत ही भले लोग हैं। पति ग्रेजके चिकित्सा-विद्यालयमें प्राध्यापक हैं और पत्नी उत्तम गायिका और उससे भी कहीं अच्छी दार्शनिक है। वे दोनों अपने विवाहके समयसे ही ब्रह्मचर्यका पालन कर रहे हैं। इन सभी उत्तम गुणोंकी स्रोत पत्नी ही है। उसका कहना है कि उसके मनमें संभोगकी कभी कोई इच्छा ही नहीं उठी। दोनों कई मानीमें अनुपम है।

रामदास बारडोलीमें है और देवदास दिल्लीमें। छगनलाल यहीं है। महादेव, प्यारेलाल, सुब्बैया और बाकी लोग तो यहाँ हैं ही।

हम सबकी ओरसे स्नेह-वन्दन,

हृदयसे आपका,

श्री हेनरी सॉलोमन लिअन पोलक
४२,४७ व ४८ डेन्स इन हाउस
२६५ स्ट्रैंड, लन्दन, डब्ल्यू॰ सी॰‒२

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३९४) की फोटो-नकलसे।

४०१. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१२ अक्टूबर, १९२८

प्रिय चार्ली,

तुम्हारे पत्र मिले। तुम ‘यंग इंडिया’ की अपनी प्रतिमें अपना लेख “ऋषियोंका देश”[१] देखोगे।

शास्त्रीका उत्तराधिकारी चुननेकी समस्या बड़ी टेढ़ी सिद्ध हो रही है। मुझे पता नहीं कि भारत सरकार क्या-कुछ कर रही है। लेकिन मैं थोड़ा चिन्तित हो उठा हूँ। शास्त्री के स्थानके लिए उनके जैसा उपयुक्त पात्र मिलना कठिन है और

  1. देखिए “ऋषियोंका आश्रम”, २१-१०-१९२८।