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४०५. बारडोलीकी गायें

बारडोली ताल्लुकेके एक वैश्य सज्जन लिखते हैं:[१]

यदि ये तथ्य ठीक हों तो इस समय बारडोलीमें जो रचनात्मक कार्य किया जा रहा है, हमें उसे अधिक व्यापक बनाना चाहिए। ‘नवजीवन’ में अनेक बार बताया जा चुका है कि बैलोंको बधिया न करानेसे कितनी हानि हो रही है। इसमें सन्देह नहीं कि भैंससे जितना दूध मिल सकता है लगभग उतना ही गायसे भी मिल सकता है। किन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है जब गायकी सार-सँभाल वैज्ञानिक विधिसे की जाये। यदि हम अन्ततः भैंसेके वधसे बचना चाहते हो तो हमें गोवंशकी उन्नतिकी ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए। गोवंश जितना उपयोगी है, भैंसकी नस्ल उतनी उपयोगी नहीं है, यह बात सहज ही सिद्ध की जा सकती है। गायोंको भले-बुरे कैसे भी साँड़से मिला देनेसे गोवंश उत्तरोत्तर दुर्बल होता जाता है। हमने इस ओर ध्यान दिया ही नहीं है। बारडोलीमें जो भारी जागृति हो रही है उसके फलस्वरूप गायोंका प्रश्न हल किया जा सके तो बारडोलीके लोगोंने सत्याग्रहके द्वारा जो सेवा की है, उसमें वे बहुत अधिक वृद्धि कर सकते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-१०-१९२८
 

४०६. बेहाल

एक नवयुवक लिखता है:[२]

इस युवकने अपना नाम दिया है। किन्तु उसके समान ही दूसरे बहुत-से हैं और इसलिए वह ‘नवजीवन’ के द्वारा उपाय जानना चाहता है। मेरे पास कोई रामबाण दवा नहीं है। इसे मैं एक प्रकारका रोग मानता हूँ। मुझे मालूम है कि इस रोगके बहुत-से रोगी हैं। जिससे कुछ लोगोंको फायदा हुआ है, वह उपाय बतलाता हूँ।

मुख्य वस्तु ईश्वरपर श्रद्धा है। और जिसके मनमें श्रद्धा है, वह अपनी दुर्बल स्थिति में ईश्वरकी सहायता माँगता है, और उसे सहायता मिलती भी है। प्रार्थना किससे करें? ईश्वर क्या सहायता करनेके लिए निठल्ला बैठा हुआ है? अगर निठल्ला बैठा

  1. अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें कहा गया था कि बारडोली और अन्य ताल्लुकोंमें प्रायः रानीपरज समाजके लोग ही गाय पालते हैं। अन्य लोग भैंसे रखते हैं और बैलोंको काममें लाकर जब वे बूढ़े हो जाते हैं तब आवारा छोड़ देते हैं। झूठी भावना के कारण बैलोंको बधिया करनेका विरोध भी किया जाता है, फलस्वरूप नस्ल खराब होती रहती है।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उन्नीस वर्षीय इस विवाहित युवकने अपनी कुटेवके आगे लाचार होकर उसका उपाय पूछा था।