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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इन कामोंको आप खाटपर पड़े-पड़े भी शुरू कर सकते हैं। आप अभी इतना करें और बादमें अन्य सुझावोंके बारेमें पूछें।

किन्तु मैं एक बात तो कह ही डालूँ। आप खटिया छोड़ दें। आपको यह काम कठिन जान पड़ेगा और मुझे भी कठिन लगता है, किन्तु इस सिलसिलेमें आप डाक्टरोंके अतिरिक्त किसी नीम-हकीमकी राय भी लें। ऐसा एक नीम-हकीम तो कुवलयानन्द है जिसे शायद आप जानते हैं। मैं अभीतक उसे परख नहीं सका हूँ। ऐसा ही एक नीम-हकीम और भी है। वह योगका तो नाम भी नहीं जानता, किन्तु जलोपचार करता है। यदि आप ऐसे लोगोंको अपने आसपास इकट्ठा करना चाहें तो मैं पता लगाऊँ। उनकी बात सुनकर जो चिकित्सा निरापद जान पड़े और जिसपर विश्वास जमे वह उपचार करें। खाटपर पड़े रहनेका तो कोई कारण नहीं है। क्या इन नीम-हकीमोंमें मैं भी एक नहीं हूँ? किन्तु अब मैं निकम्मा हो गया हूँ। फिर भी सबसे बड़ा हकीम राम तो है ही। यदि मैंने उसे जान लिया होता तो उसे आपके पास भेज दिया होता। किन्तु ऐसा दिन तो “सोनियाके पाँवमें मुतिया”[१] ही कहा जायेगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ३२१७) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: महेश पट्टणी
 

४०९. पत्र: हरिभाऊ उपाध्यायको

मौनवार, १५ अक्टूबर, १९२८

भाई हरिभाऊ,

तुम्हारा पत्र मिला। भाई जेठालालके कामकी कमियोंके बारेमें मीराबहनने मुझे विस्तारपूर्वक लिखा है। उसने लिखा है कि जेठालालने अपनी भूल सुधारना स्वीकार कर लिया है। तुम भी जेठालालको प्रेरित करते रहना।

तुम्हारा तैयार किया हुआ तलपट मैंने समझ लिया। मेरी सलाह है कि तुम असत्यके विभाग मत करो। अतिशयोक्ति, अर्ध सत्य, असत्य इन सबके प्रति आँखें मूँद लेना असत्य ही है। हम स्वयं अपने प्रति बहुत उदारतापूर्वक बरतते हैं, जब कि अपने प्रति हमें बहुत कृपण होना चाहिए। हमें अपना राई बराबर दोष पहाड़ जैसा दीखना चाहिए।

ब्रह्मचर्य के बारे में भी मुझे कुछ ऐसा ही दिखाई देता है। जिसे हम सूक्ष्म ब्रह्मचर्यका भंग समझकर दरगुजर कर देते हैं अक्सर वह स्थूल ब्रह्मचर्यका ही भंग होता है। उदाहरण के लिए, मलिन स्पर्श-मात्र स्थूल ब्रह्मचर्यका भंग है। स्पर्शहीन

  1. आशय किसी गरीब लड़कीके पांवमें मोतीके आभूषण-जैसी असम्भव बातसे है।