पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४१६

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४११. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको

१५ अक्टूबर, १९२८

भाई रामेश्वरदास,

तुमारे पत्र तो आते ही रहते है। अब तो धर्मपत्निको पूरा आराम हो गया होगा। चित शांतिका एक ही उपाय है―रामनामको हृदय में अंकित करना।

बापूके आशीर्वाद

जी॰ एन॰ १९६ की फोटो-नकलसे।

 

४१२. पत्र: ब्रजकृष्ण चाँदीवालाको

१५ ओक्टूबर, १९२८

चि॰ ब्रजकिसन,

तुमारा पत्र मीला है। तुमारे जैसी शंका बहोत खतोंमें है। उत्तर ‘न॰ जी॰’[१] में दीया है इसलीये यहां कुछ नहिं लीखता हुं। तुमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा।

बापूके आशीर्वाद

जी॰ एन॰ २३६० की फोटो-नकलसे।

 

४१३. पत्र: करीम गुलामअलीको[२]

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका खत मिला। आपकी स्थिति भी वैष्णव सम्प्रदायवालोंकी-जैसी ही है। मेरा जन्म भी इसी सम्प्रदाय में हुआ है। तमाम सम्प्रदायोंमें जो अन्दरूनी बुराइयाँ आ गई हैं, वे उन अलग-अलग सम्प्रदायोंके लोग खुद ही दूर कर सकते हैं। ऐसे

  1. देखिए “पावककी ज्वाला“, ३०-९-१९२८। उक्त लेख हिन्दी नवजीवनके ४-१०-१९२८के अंकमें प्रकाशित हुआ था।
  2. इस पत्रकी टाइपशुदा दफ्तरी प्रति (एस॰ एन॰ १३५५६) पर निम्नलिखित टिप्पणी मिलती है: “खोजा फिरका और यूरोपमें परम पावन एच॰ एच॰ आगाखाँ द्वारा खर्च की जानेवाली बड़ी-बड़ी राशियों के बारे में (पत्र नष्ट कर दिया गया)।”