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४१५. पत्र: रॉय हॉपकिन्सको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला और उसके साथ ५ पौंडका चेक भी, जो आपने ‘शान्ति’ विषयपर मुझसे एक छोटा-सा लेख लिखवाने के लिए भेजा है। पत्र और चेक के लिए धन्यवाद। मगर अभी तो मेरे हाथमें इतना काम है कि लिखनेके लिए थोड़ा समय निकालना भी सम्भव नहीं दिखाई पड़ता, और मेरा खयाल है कि मेरे अन्दर इतनी विनम्रता तो है ही कि मैं महसूस कर सकूँ कि शान्तिके लिए लालायित सारा संसार शान्ति प्राप्त करने के उपायोंके बारेमें मेरे शब्द सुननेके लिए ही कान लगाये नहीं बैठा है।

आपने जो चेक भेजनेकी कृपा की है, उसे मैं लौटा रहा हूँ। मैं यदि कभी कुछ लिखूँ भी तो पारिश्रमिकके लिए नहीं लिखूँगा। क्योंकि मैंने ऐसा कभी नहीं किया। कुछ पत्रिकाओंके लिए मैंने लेख लिखे हैं और कई बार मुझे उनके लिए पारिश्रमिक भी मिला है। ऐसी सभी राशियाँ मेरे सार्वजनिक कार्योंको चलानेके लिए चन्दोंके रूप में दे दी गई हैं। मुझसे कोई लेख लिखा पाना किसीके लिए भी आसान काम नहीं होता, क्योंकि मैं किसी व्यक्ति या किसी पत्रिकाके लिए लिखनेसे बहुत बचता रहता हूँ। इसलिए आप चेक लौटाने और अपनी असमर्थता प्रकट करनेके लिए मुझे क्षमा करनेकी कृपा करें।

हृदयसे आपका,

श्री रॉय हॉपकिन्स
प्रबन्ध-निदेशक
लन्दन जनरल प्रेस
८ बुवरीज़ स्ट्रीट
लन्दन ई॰ सी॰ ४

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३८८) की फोटो-नकलसे।