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४१६. पत्र: रुखी गांधीको

१६ अक्टूबर, १९२८

चि॰ रुखी,

मैं झटपट उत्तर दे दूँ, यही ठीक है न? बैलके सम्बन्धमें चुप लगाकर तुमने ठीक किया। वहाँ तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है और तुम अच्छा काम भी कर रही हो इसलिए तुम्हें यहाँ बुलानेका मुझे तनिक भी लोभ नहीं है। “सुतर आवे त्यम तुं रहे, जेम त्यम करीने हरिने तुं लहे।”[१]

लगता है केशू वहाँ अच्छी तरह जम गया है। मैं फिलहाल राधाके बारे में कुछ नहीं कह सकता। आजकल यहाँ मलेरियाकी अच्छी प्रदर्शनी हो रही है।

बापूके आशीर्वाद

चि॰ रुक्षमणि
मार्फत―खुशालभाई गांधी
मिडिल स्कूलके सामने
नवापुरा, राजकोट
गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ८७६१) की नकलसे।
सौजन्य: राधाबहन चौधरी
 

४१७. शास्त्रीका करतब

इस सप्ताह एक पत्र-लेखकने क्लॉर्क्सडॉर्पकी घटनाका आँखों देखा हाल पूरी तफसीलके साथ भेजा है। घटना अब काफी प्रसिद्धि पा चुकी है। दक्षिण आफ्रिकाके समाचारपत्र उसके विवरणसे रँगे रहते हैं। हालाँकि अब संघ सरकार द्वारा दी गई ब्योरेवार, खुली और खरी सफाईके बाद घटनाके बारेमें राजनीतिक दृष्टिकोणसे कहने के लिए अधिक कुछ नहीं रहा या उसकी जरूरत नहीं रह गई है, फिर भी श्रीयुत शास्त्रीके आचरणकी प्रशंसा में जितना भी कहा जाये थोड़ा होगा। वह एक ऐसा कुचक्र था जिसके परिणाम घातक भी निकल सकते थे, पर श्रीयुत शास्त्रीने उसका सामना कितनी बहादुरी और कितनी उदारतासे किया! मेरे पास जो पत्र आया है, उससे प्रकट है कि श्री शास्त्री जिस सभामें भाषण दे रहे थे उसे तोड़नेके लिए डिप्टी

  1. अर्थात्, जिसमें सुविधा जान पड़ती हो वैसे रहो, किन्तु जैसे बने वैसे हरिको पाओ।
३७-२५