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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेयरके नेतृत्व में आई एक टोलीने वहाँकी सारी बत्तियाँ बुझा दीं पर भारतके इस सच्चे सपूत और प्रतिनिधिने घबराये या विचलित हुए बिना अपना भाषण जारी रखा। और जब एक विस्फोटके फलस्वरूप श्रोताओंको सभा-भवनमें साँस लेना भी दूभर हो गया, तब श्रीयुत शास्त्री भवनसे बाहर निकले और वहाँ उन्होंने इस भावसे अपना भाषण पूरा किया जैसे कोई गम्भीर बात या गड़बड़ी हुई ही न हो। उन्होंने अपने भाषण में उस घटनाका उल्लेखतक नहीं किया। वैसे तो दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीयोंमें वे इस घटनासे पहले ही काफी लोकप्रिय हो चुके थे। किन्तु अब उनके अविचलित साहस और उदारमना आचरणने उनको यूरोपीयोंकी नजरोंमें और भी ऊँचा उठा दिया।

और चूँकि वे किसी भी व्यक्तिगत यशके भूखे नहीं थे (चन्द ही व्यक्ति मिलेंगे जो प्रसिद्धिसे श्रीयुत शास्त्री की तरह दूर भागते हों), इसलिए उन्होंने अपनी लोकप्रियताका उपयोग उस उद्देश्यको आगे बढ़ाने के लिए ही किया जिसके लिए उन्होंने इतनी अनुपम योग्यता और सफलताके साथ काम किया है। दक्षिण आफ्रिकामें इतने अल्प कालतक रहकर ही उन्होंने संसारके उस भाग में हमारे देशवासियोंकी प्रतिष्ठा काफी ऊँची उठा दी है। आशा है कि वे लोग आदर्श आचरण करके अपने-आपको उनके योग्य सिद्ध कर दिखायेंगे।

परन्तु दक्षिण आफ्रिकाकी पेचीदा और नाजुक समस्याको हल करनेमें शास्त्रीका योगदान इस आकस्मिक घटनाके दौरान उनके आचरणतक ही सीमित नहीं है। राजदूतके कार्यालयकी आन्तरिक कार्य-प्रणालीके विषयमें हमारी जानकारीका एकमात्र स्रोत उसके परिणाम ही होते हैं। उनके अलावा हम उसके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं जानते। सो हम क्या जानें कि इस काममें उन्होंने किस प्रकार अपना पूरा राजनीतिक कौशल लगा दिया―वह राजनीतिक कौशल जिसके मूलमें व्यक्तिका यह विश्वास काम कर रहा हो कि उसका उद्देश्य सही है और जिसमें कोई गलत, ओछा और धूर्ततापूर्ण काम करने अथवा ऐसे कामका समर्थन करनेकी गुंजाइश न हो? परन्तु इस बातकी जानकारी तो हमें है ही कि उन्होंने अपने उद्देश्यकी खातिर प्रकृति द्वारा मुक्तहस्तसे प्रदान की गई अपनी वक्तृत्व-कला, अंग्रेजी और संस्कृतके अपने पाण्डित्य तथा ज्ञानके विशाल और वैविध्यपूर्ण भण्डारका उपयोग करने में कभी तनिक भी संकोच नहीं किया। वे आम और विशिष्ट यूरोपीयोंकी सभाओं और बैठकोंमें भारतीय दर्शन तथा संस्कृतिके विषयपर भाषण करते रहे हैं, जिससे यूरोपीय लोगोंको कुछ सोचनेका मसाला मिला। इसके फलस्वरूप उनके पूर्वग्रहोंकी वह मोटी-कड़ी परत कुछ ढीली पड़ गई जिसके कारण आम यूरोपीय अबतक भारतीयोंमें कोई अच्छाई देख ही नहीं पाते थे। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके ध्येयको आगे बढ़ाने में उनका सबसे बड़ा और सबसे स्थायी योगदान शायद यही है―उनके ये भाषण ही।

श्रीयुत शास्त्रीका उत्तराधिकारी चुनना भारत सरकारके लिए सचमुच बड़ा दुःसाध्य कार्य होगा। शास्त्रीजी से दक्षिण आफ्रिकामें कुछ और समयतक रहनेके लिए जितनी बार भी आग्रह किया गया, वे लगातार अस्वीकार करते आये हैं। दक्षिण