पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४२१. पत्र: यज्ञेश्वर प्रसादको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१८ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, धन्यवाद।

तपेदिकसे बीमार जिस लड़केकी बाबत आपने लिखा है, यदि वह इतना बड़ा हो कि अच्छाई-बुराईको खुद समझ सकता हो तो मैं समझता हूँ कि उसे अपना फैसला आप करने देना चाहिए और उसे अपने धार्मिक दृष्टिकोणके अनुसार जो-कुछ खाना उचित लगे, वह खाने देना चाहिए। पर यदि उसकी उम्र इतनी कच्ची हो कि वह अपनी राय खुद न बना सकता हो, तो उसके लिए अपने पिताकी इच्छाके मुताबिक चलना ही उचित रहेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत यज्ञेश्वर प्रसाद
७९०, नई बस्ती, क्वीन्स रोड, दिल्ली

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५६१) की फोटो-नकलसे।

४२२. पत्र: वीणा दासको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१८ अक्टूबर, १९२८

प्रिय बहन,

आपका पत्र कुछ दिन पहले मिला था। मैं उसका उत्तर नहीं दे सका। मैंने आत्म-रक्षातक के लिए शारीरिक बलके प्रयोगकी वकालत कभी नहीं की। मैंने केवल इतना कहा है कि कायरताके मुकाबले शारीरिक बलका प्रयोग ज्यादा अच्छा है, मतलब यह कि यदि हम कहीं शारीरिक बलका प्रयोग करना चाहें तो सिर्फ मृत्युके भयसे उसका प्रयोग करनेसे हाथ रोकना गलत होगा। मैं जिस चीजकी वकालत करता हूँ वह यह है कि हमारे अन्दर मृत्युको वरण करनेका साहस होना चाहिए, वह चाहे आत्म-रक्षाके लिए हो या देशकी खातिर।

हृदयसे आपका,

श्रीमती वीणा दास
७, राममोहन राय रोड, कलकत्ता

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५६२) की फोटो-नकलसे।