पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४२४

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४२३. पत्र: उर्मिला देवीको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१८ अक्टूबर, १९२८

आपका पत्र मिला। परेशानियाँ आपका पल्ला कभी नहीं छोड़तीं। फिर भी, आशा है कि अब धीरेन काफी स्वस्थ हो गया होगा।

देवधर या तो अपने घरमें मिल जायेंगे या सेवा-सदनमें। मेरा खयाल है कि वे जब भी पूनामें होते हैं, सेवा-सदन अवश्य जाते हैं।

अभी इस समय आश्रममें मलेरियाके कई मरीज हैं। इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं, क्योंकि यह मौसम ही मलेरियाका है। इसकी हम अधिक चिन्ता नहीं करते, क्योंकि इसका सिर्फ एक इलाज है―जबतक ज्वर रहे उपवास करो और पहले कोई दवा आजमाकर देख लो और बीमारी दूर न हो तो कुनैनका सेवन करो।

श्रीमती उर्मिला देवी
जाह्नवी विला
डाकघर―डेकन जिमखाना
पूना

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५६३) की फोटो-नकलसे।

 

४२४. पत्र: टी॰ आर॰ फूकनको

सत्याग्रहाश्रम, सावरमती
१८ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं ऐसी क्या अपील जारी कर सकता हूँ जिसे लेकर आप लोगोंके पास जा सकें? मेरा यही सुझाव था कि पैसेवाले कांग्रेसियोंके पास आप स्वयं जाकर उनसे इस मुश्किलसे बाहर निकलने में मदद देनेके लिए कहें।[१] मैं समझता हूँ कि आपके लिए यही एक उचित मार्ग है और मैं यह भी महसूस करता हूँ कि पैसेवाले कांग्रेसियोंको आपका यह भार उठाना ही चाहिए। मेरी सलाह है कि आप जाँचा हुआ प्रमाणित लेखा लेकर उनके पास जायें।

  1. देखिए “तार: टी॰ आर॰ फूकनको”, ६-१०-१९२८