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४३१. भोले मजदूर

पंचमहाल से प्राप्त एक पत्रसे मालूम हुआ है कि नीतिहीन और पैसेके लोभी दलाल भोले राजपूतों और अन्य जातियोंके लोगोंको वहाँसे असमके चाय-बागानोंके लिए बहकाकर ले जाते हैं। मेरे पास इस तरह ले जाये गये बारह मजदूरोंके सम्बन्धमें हलफिया बयान भेजे गये हैं, जिनसे पता चलता है कि इन दलालोंने जवान पुरुषों और स्त्रियोंको बड़ौदाके पास मजदूरी दिलानेका झूठा वादा करके उन्हें ठेठ असम पहुँचा दिया।

प्रश्न यह नहीं कि वे असममें सुखी हैं या दुःखी; बल्कि यह है कि किसीको धोखा देकर इतनी दूर कैसे ले जाया जा सकता है। हलफिया बयान देनेवालों का कहना है कि वे अपनी खेती-बाड़ी छोड़कर गये थे। वे बेचारे इस आशासे घरसे निकले थे कि उन्हें कहीं पास ही अच्छी मजदूरी मिल जायेगी। किन्तु वे इस तरह जाल में फँस गये और उनके सगे-सम्बन्धी घोर चिन्तामें पड़े हुए हैं।

इस अनिष्टकर स्तिथिको रोकनेका एक ही उपाय है। दलाल दलाली पानेके लिए मजदूरोंको बहकाते और उन्हें झूठा लालच देते हैं। यदि मजदूर भरती करनेपर दलाली देना बिलकुल बन्द कर दिया जाये तो कोई किसीको बहकाने ही न जाये। असमके बागान-मालिकोंको उचित ढंगसे समुचित शर्तें प्रस्तुत करके मजदूर प्राप्त करनेका अधिकार है। वे चाहें तो सही-सही विज्ञापन भी प्रकाशित कर सकते हैं; किन्तु दलालोंके जरिये मजदूरोंको भरती करनेकी प्रथा बन्द की जानी चाहिए। दलालोंको हर मजदूरपर कुछ दलाली दी जाती है। सुना गया है कि उन्हें प्रति व्यक्ति दस रुपये दिये जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि महीनेमें तीस मजदूरोंको बहका लिया तो ३००रु॰ कमाई हो गई। यह लालच कोई मामूली लालच नहीं है। इसलिए बागान-मालिक चाहे जितनी चेतावनी क्यों न दें, दलाल इस तरह झूठका आश्रय लिये बिना नहीं रहेंगे।

यदि वेतन ठीक हो और नौकरी आकर्षक हो तो वास्तवमें दलालकी मध्यस्थताकी आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए। अनुभव बताता है कि जहाँ काम सख्त, तनख्वाह कम और कामकी जगह घर-बारसे दूर हो, वहीं दलालोंकी मध्यस्थताकी जरूरत होती है। यहाँ कामकी जगहका दूर होना तो अनिवार्य है; किन्तु तनख्वाह और दूसरी शर्तें आकर्षक हों तो मजदूर बेशक वहाँ अपने-आप चला जायेगा। जितना रुपया दलालोंपर खर्च किया जाता है यदि वही मजदूरोंको अच्छी सुविधाएँ देनेमें लगाया जाये तो जैसे अन्यायकी घटनाओंके हलफिया बयान प्राप्त हुए हैं वैसे अन्यायका उन्मूलन हो जाये।

बहरहाल, मालिक दलालोंसे काम लेना बन्द करें या न करें; जिन लोकसेवकोंको इन अन्यायोंका पता चले, उन्हें लोगोंमें वस्तु-स्थितिका प्रचार कर उन्हें सावधान कर देना चाहिए ताकि वे इन दलालोंके पंजोंमें न फँसें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-१०-१९२८