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४३४. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२१ अक्टूबर, १९२८

आपको अपील[१] मैं प्रकाशित कर रहा हूँ। पर मैं इससे सन्तुष्ट नहीं हूँ। वह बहुत ही असम्बद्ध ढंगसे लिखी हुई है और इसका कोई स्पष्ट रूप नहीं बन पाया है। आपको विपदग्रस्त क्षेत्रकी जन-संख्या, विपत्तिकी रूपरेखा और अपेक्षित राशिका उल्लेख तो करना ही चाहिए था। आपने जिस तरह सामान्य प्रकारकी एक अपील तैयार कर दी है वह लोगोंको प्रभावित कैसे कर पायेगी? इससे स्पष्ट दिखता है कि आप बहुत थके हुए, हैं चिन्ताओं तथा व्यस्तताके बोझसे दबे हुए हैं और आपने जल्दबाजीमें यह अपील लिख डाली है। यदि आप चाहते हैं कि लोगोंपर इसकी अच्छी प्रतिक्रिया हो तो मेरे पास एक ऐसी अपील तैयार करके भेज दीजिए जो आपकी लिखनेकी योग्यताके अनुरूप हो।

अब आप कैसे हैं?

आशा है कि बछड़ेसे सम्बन्धित विवादसे[२] आपका कुछ मनोरंजन तो हुआ होगा, कोई शिक्षा उससे भले ही न मिली हो। इस सम्बन्धमें आनेवाले सभी पत्रोंको यदि मैं महत्त्व देने लगता, तो मुझे साबरमतीमें डूब ही मरना पड़ता। मगर अभी तो स्थिति यह है कि इन पत्रोंसे कुछ मनोरंजन भी हो जाता है और थोड़ी शिक्षा भी मिलती है।

हृदयसे आपका,

च॰ राजगोपालाचारी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५६७) की फोटो-नकलसे।

 
  1. देखिए “दक्षिण में अकाल”, २५-१०-१९२८।
  2. देखिए “पावककी ज्वाला“, ३०-९-१९२८।