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९. पत्र: गोवर्धनभाई आई॰ पटेलको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१ जुलाई, १९२८

प्रिय गोवर्धनभाई,

आपका पत्र[१] मिला। मुझे तो नहीं लगता कि मैंने सचमुच कोई नई शर्त जोड़ी थी। मैं आपको बता ही चुका हूँ कि आपने अपने पत्र में जो कुछ लिखा था उसीको मेरी भाषामें फिरसे लिख दिया जा सकता है। यदि दाताओंकी ऐसी ही इच्छा है कि निरीक्षण-समितिको निर्बाध अधिकार प्राप्त[२] हों तो मुझे उस पर कोई आपत्ति नहीं है ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गोवर्धनभाई आई॰ पटेल
लालावासा स्ट्रीट, साँकरी शेरी
अहमदाबाद

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४४६) की माइक्रोफिल्मसे।

 


१०. पत्र: आर॰ एम॰ देशमुखको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका २३ जूनका पत्र मिला।

आपका सुझाव[३] मुझे व्यवहार्य नहीं लगता। खादी-कार्यकर्त्ताओंने तो अनुभव से यही जाना है कि जबतक हाथ-कताईका संगठन कुशल लोग नहीं करें, तबतक वह सफल नहीं हो सकती। संघको जो भी सूत दिया जाये, उसे वह यों ही स्वीकार

 

  1. २९ जून का पत्र, यह गांधीजी के २७ जूनके पत्र के उत्तरमें लिखा गया था; देखिए खण्ड ३६, पृष्ठ ४८९-९०।
  2. गोवर्धनभाईने लिखा था: "निरीक्षण समितिपर ऐसी कोई बाध्यता नहीं होगी कि वह अपने सुझाव आदि पहले दाताओंके सामने रखकर उनपर उन लोगोंकी सहमति ले ले और तभी मजदूर संघसे उन्हें स्वीकार करने को कहे..." (एस॰ एन॰ १३४४२)
  3. हाथ कते सूतको बेचनेकी कठिनाई समझाते हुए देशमुखने अपने पत्र (एस॰ एन॰ १३६२७) में कहा था कि सहकारिता विभाग, मध्य प्रान्तमें हाथ कताईको एक सहायक धन्धा बना सके, इसके लिए केन्द्रीय बैंकके बजाय अखिल भारतीय चरखा संघको सहकारी समितियोंके सदस्यों द्वारा काते गये तमाम सूतको खरीद लेनेकी जिम्मेदारी ले लेनी चाहिए।