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पत्र: मुल्कराजको


नहीं कर लेगा। वह तो केवल ऐसा हाथ-कता सूत ही ले सकता है जो जाँच करने पर ठीक पाया गया हो, जो काफी समान और निर्देशके अनुसार गुंडियोंमें लपेटा गया हो। और मैं नहीं समझता कि आप संघको ऐसा सूत दे सकेंगे जो इन शर्तोंको पूरा कर सके। इसके अलावा, यदि आप छुटपुट प्रयत्नों और प्रचारके बल पर हाथ-कताईको लोक-प्रिय बनानेकी आशा रखते हैं तो वह आशा विफल ही होगी। इसलिए मेरा सुझाव यह है कि आप उन परिस्थितियोंका अध्ययन करें जिनमें मैसूरमें हाथ-कताईका संगठन किया जा रहा है और फिर मैसूरके ढंग पर ही हाथ-कताईके कामको आगे बढ़ाइए। उस संगठनकी मुख्य विशेषता यह है कि कोई एक जिला संघको हाथ-कताईके संगठनके निमित्त सौंप दिया गया है। संगठनका खर्च मैसूर राज्य उठाता है। अगर आप संघके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव रखेंगे तो वह उसे स्वीकार करेगा या नहीं, इस सवाल पर अभी मैंने विचार नहीं किया है और न तबतक विचार करनेका कोई सवाल उठता है जबतक आप कोई ठोस प्रस्ताव लेकर आगे न आयें।

हृदयसे आपका,

माननीय आर॰ एम॰ देशमुख
कृषि-मन्त्री, मध्य प्रान्त
नागपुर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६३१-ए) की माइक्रोफिल्मसे।

 


११. पत्र: मुल्कराजको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१ जुलाई, १९२८

प्रिय लाला मुल्कराज,

आपके दो पत्र मिले, जिनमें से एक पण्डित मालवीयजी को लिखे उस पत्रकी नकल है जिसमें आपने सिखों और समितिके[१] बीच पैदा हुई गलतफहमीकी[२] चर्चा की है। मेरी सलाह यह है कि आप शीघ्र ही अन्तिम रूपसे इसका समाधान कर डालिए। और मैं नहीं समझता कि केवल बाड़ा[३] लगानेसे ही बात बन जायेगी,

 

  1. जलियांवाला बाग-स्मारक कोष समिति।
  2. सीमा रेखाके बारेमें।
  3. जलियांवाला बाग-स्मारक स्थलके चारों ओर पहले बाँसकी जाफरी लगा दो गई थी, किन्तु कुछ एक अकालियों तथा अन्य लोगोंने उसे जबरदस्ती हटा दिया। अब वहाँ लोहेका बाड़ा लगाने की बात चल रही थी (एस॰ एन॰ १५३६७)।