४३७. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको
२३ अक्टूबर, १९२८
तुम्हारा पत्र मिला; तार भी मिल गया है। आशा है, यह पत्र मिलने तक सुशीला स्वस्थ होकर चलने-फिरने लगी होगी और धैर्यबाला हँसने-खेलने लगी होगी। नानाभाईका पत्र मुझे कल ही मिला है, जिसमें उन्होंने तार देने और बच्चीका नाम सुझानेकी बात लिखी है। आज भी यदि अभी-अभी अर्थात् सुबहके साढ़े तीन बजे मुझे तुम्हारे पत्रकी याद न आती तो वह पड़ा रह जाता। पिछली डाकके समय भी ऐसा ही हुआ था। आजकल मुझे पत्र लिखनेका बहुत ही कम समय मिलता है। इसीलिए सुबह तीन बजे और कभी दो बजे उठकर पत्र लिखवाता हूँ।
रसिक और नवीन के दिल्ली जानेकी बात मैं तुम्हें लिख चुका हूँ।[१] रामदास अभी बारडोलीमें है। नीमू यहीं है। बा की तबीयत कुछ बिगड़ गई है, किन्तु चिन्ताकी कोई बात नहीं है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (जी॰ एन॰ ४७४४) की फोटो-नकलसे।
४३८. पत्र: मीराबहनको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२३ अक्टूबर, १९२८
तुम्हारा तार मिला। आजकल तो सोमवारको भी इतना समय निकालना मुश्किल हो गया है जिससे मैं तुम्हें स्नेह-पत्र लिख सकूँ। इसलिए अभी तुमको मेरे नियमित पत्रोंके बिना ही काम चलाना पड़ेगा। हाँ, लेकिन तुम्हारे पत्र तो नियमित रूपसे आते ही रहने चाहिए।
यहाँ सभी-कुछ काफी ठीक चल रहा है, हालाँकि मैं नहीं कह सकता कि सब ठीकसे जम गया है।
महादेवको आज जाँचके सिलसिले में बारडोली जाना है। एक सप्ताह या शायद इससे कुछ अधिक समय तक उसे बाहर रहना पड़ेगा।
- ↑ देखिए “पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको”, ३१-८-१९२८ के पश्चात्।