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पत्र: वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको

 

‘बेकरी’ क्रमशः तरक्की करती जा रही है। प्यारेलालने गेहूँके मुरमुरे बनानेका एक नया तरीका निकाला है। मैं सोच रहा हूँ कि मुरमुरे तैयार होते ही उसका एक पैकेट तुम्हें भेज दूँ।

तुम्हारे बारे में एसोसिएटेड प्रेसका एक छोटा-सा समाचार पत्रोंमें प्रकाशित हुआ था। वह शायद उसी भेंटका विवरण है, जिसका तुमने उल्लेख किया था।

स्नेह।

बापू

[पुनश्च:]

मैंने तुमको यह बतलाया या नहीं कि ग्रेग आजकल यहीं है?
मीराबहन

मूल अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१६) से। सौजन्य: मीराबहन; जी॰ एन॰ ८२०६ से भी

 

४३९. पत्र: वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२३ अक्टूबर, १९२८

प्रिय भाई,

आप मेरे प्रति बड़े ही शुभेच्छु और कृपालु रहे हैं। आपके पत्र नियमित रूपसे मिलते रहे हैं। उनसे मुझे मानसिक शान्ति मिली है और उनके आधारपर मैं शिकायतें करनेवालों को जवाब भी दे सका हूँ।

आपने चमत्कार कर दिखाया है। आपने कहा है कि मैं आपसे और अधिक समय तक इस पदपर बने रहनेका आग्रह न करूँ। मैंने अत्यन्त ही निष्ठापूर्वक उसका पालन किया है और साथ ही मैं अन्य भाइयोंसे भी ऐसा आग्रह न करनेके लिए कहता रहा हूँ, परन्तु जब मैं भविष्यकी बात सोचता हूँ तो मन काँप उठता है। तरह-तरहकी भोंडी अफवाहें सुनाई पड़ रही हैं। बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी, यदि यह पद सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिकी बजाय किसी कृपापात्रको दे दिया गया। मुझे कोई भी ऐसा नाम नहीं सूझ पड़ता, जिसके पक्षमें मैं लोकमतको लानेका प्रयास करूँ। ईश्वर आपको दीर्घायु बनाये।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ ११९९४) की फोटो-नकलसे।