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४४०. पत्र: पेरिन कैप्टेनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२४ अक्टूबर, १९२८

अब मैं तुम्हारा मतलब समझ गया। मृदुलाने अबतक अपना भण्डार नहीं खोला है। यदि वह भण्डार खोले और उसमें तुम्हारा खद्दर भी रखे तो उसे कोई रोकेगा नहीं। काकासाहब तुम्हारी किस रूप में सहायता कर सकते हैं?

आन्ध्र के बारेमें मुश्किल यह है कि वहाँके अनेक निर्माता अप्रामाणिक साबित हो चुके हैं। इसलिए ज्यादा से ज्यादा होशियारी रखना जरूरी हो गया है।

श्रीमती पेरिन कैप्टेन
इस्लाम क्लब बिल्डिंग्स, चौपाटी, बम्बई

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५६९) की माइक्रोफिल्मसे।

 

४४१. पत्र: प्रताप दयालदासको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२४ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप और आपकी धर्मपत्नी जो करनेकी सोच रहे हैं वह गर्भनिरोध नहीं, बल्कि गर्भपात है। गर्भपात कानूनकी नजरमें एक अपराध है और वास्तव में उससे आपकी पत्नी के स्वास्थ्यको स्थायी रूपसे हानि भी पहुँच सकती है। इसलिए मैं आप दोनोंसे जोरदार आग्रह करूँगा कि वैसा कदम न उठायें। गर्भनिरोध तो कृत्रिम साधनोंसे गर्भको ठहरने न देना हुआ, जो गर्भपातसे बिलकुल ही भिन्न चीज है। क्योंकि यह तो भ्रूण-हत्या है, इसलिए मैं आपको एक ही मार्ग सुझा सकता हूँ कि गर्भको अपनी सहज गतिसे विकसित होने दीजिए और जब बच्चा पैदा हो तो उसे स्नेहपूर्वक पालिए-पोसिए। आगे गर्भ न ठहरने देनेके लिए आपको दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि आप उस बिस्तर या उस कमरेमें नहीं सोयेंगे, जिसमें आपकी पत्नी सोती हैं और आप दोनोंको एक साथ एकान्तमें रहने से हर हालत में बचना चाहिए।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत प्रताप दयालदास
मार्फत―दयालदास मूलचन्द
मेन बाजार, हैदराबाद

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५७१) की माइक्रोफिल्मसे।