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दक्षिणमें अकाल

परिस्थितियों में मृत्यु मुक्ति भी हो सकती है, विशेषकर जब वह किसीपर दण्डस्वरूप न थोपी जाकर एक दवा, एक मरहमके रूपमें उसे दी गई हो। एक अंग्रेज कविकी उक्ति है: “मृत्यु एक निद्रा और विस्मरण ही है।” सद्गुणोंका माहात्म्य दिखानेके लिए हमें ऐसी कल्पनाएँ नहीं करनी चाहिए कि मृत्युके पश्चात् पापकर्मोंके लिए नारकीय यन्त्रणाएँ दी जायेंगी और पुण्य कर्मोके लिए पुरस्कारस्वरूप हूरें मिलेंगी। सद्गुण यदि अपने-आपमें आकर्षक न हों तो उनको बेकार मानकर घूरेपर फेंक देना ही उचित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रकृति हमको जितनी लगती है, उतनी क्रूर है नहीं। हम तो स्वयं ही बहुधा बड़े क्रूर होते हैं। स्वर्ग और नरक दोनों हमारे अन्दर ही मौजूद हैं। मृत्यु के बाद जीवन होता तो है, पर वह हमारे वर्तमान अनुभवोंसे इतना भिन्न नहीं होता कि हम उससे भयभीत हों या उसपर प्रसन्नतासे पागल-से हो उठें। ‘गीता’ का उपदेश है: हर्ष और विषादसे ऊपर उठ जानेवाला ही स्थितप्रज्ञ है।...ज्ञानीको न मृत्यु व्यापती है और न जीवन।” ये दोनों एक ही वस्तुके दो पहलू हैं।[१]

हमारे धर्ममें अहिंसाकी कल्पना दूसरेको दुःख न देनेकी दृष्टि से की गई है। जहाँ दुःख देनेका रंच-मात्र भी विचार न हो, वहाँ भूलसे अथवा जान-बूझकर किये गये किसीके प्राण-हरणपर हाय-तोवा क्यों मचानी चाहिए? इस हाय-तोबाके पीछे अगर मृत्युका भय नहीं तो और क्या है? और मृत्युका भय मनुष्यको शोभा नहीं देता। जहाँ यह भय है वहाँ अहिसारूपी पुरुषार्थ अशक्य है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-१०-१९२८
 

४४४. दक्षिणमें अकाल[२]

तमिल प्रदेशके सेलम, कोयम्बतूर और अन्य क्षेत्रोंकी जनता मध्यवर्ती क्षेत्रोंमें अनिश्चित तौरपर होनेवाली वर्षापर निर्भर रहती है। यह वर्ष उनके लिए सबसे बुरे वर्षों में से एक सिद्ध हो रहा है। खादी-केन्द्रोंसे प्राप्त विवरणों से पता चलता है कि गाँवोंमें बेरोजगारी बहुत अधिक बढ़ गई है। खेती-बाड़ीका मौसम आम तौरसे अक्टूबरमें शुरू होता है और खादी-क्षेत्रोंकी किसान महिलाएँ अपना कताईका काम अगले चार महीनोंके लिए अकसर बन्द कर देती हैं। वैसे कुछ महिलाएँ पूरे वर्ष भी कताई करती रहती हैं, लेकिन खेतोंमें काम कर सकनेवाली महिलाएँ आम तौरपर इस अवधिमें चरखे बन्द कर देती हैं। परन्तु इस वर्ष कतैयोंकी संख्या घटने की बजाय और बढ़ गई है और हमारे भण्डारोंपर रुई लेनेवालोंकी खासी भीड़ लगी रहती है।...'
  1. इसके बादका पैरा गुजराती नवजीवनसे लिया गया है।
  2. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा की गई अपीलसे; यहां केवल कुछ अंश उद्धृत किये जा रहे हैं।