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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पाठकोंको भूलना नहीं चाहिए कि ये लोग एक आना रोजकी मजूरीके लिए इस तरह भीड़ लगाये रहते हैं।...
भारतके बुद्धिजीवी और खाते-पीते तबकोंके लोग इस बातको कब समझ पायेंगे कि हम जो वस्त्र पहनते हैं, वह मात्र पोशाक या सज्जाकी चीज नहीं, बल्कि राष्ट्रके आर्थिक ढाँचेका एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण अंग है, वह राष्ट्रीय संसाधनों के वितरणका एक साधन है और इस साधनको निष्प्रभ बना देना राष्ट्र के लिए विनाशकारी होगा? पुदुपालयम और अन्य अकालग्रस्त क्षेत्रोंमें, जहाँ हम खादी-केन्द्र खोलने में समर्थ रहे हैं, लोगोंको काफी बड़ी राहत पहुँचा सकते हैं, लेकिन तभी जब लोग हमारी तैयार की हुई खादी तेजीसे और बड़े पैमानेपर खरीदते रहें। तैयार खादीको तुरन्त खपत होने का मतलब होगा और भी अधिक कताई होना और भूखों मरते लोगोंको अत्यधिक आवश्यक राहत पहुँचा सकना। श्रीयुत सन्तानम् इस विपद्कालके दौरान पुदुपालयम क्षेत्रमें कताई के कामको बड़ेसे-बड़े पैमानपर संगठित करना चाहते हैं, और यदि हमें जनतासे समर्थन और सहानुभूति मिली तो उनको आशा है कि वे वहाँ सस्ते तथा निर्धारित मूल्यपर खाद्यान्नों और बीजोंकी बिक्रीकी व्यवस्था भी कर सकेंगे, जिसमें होनेवाले घाटेकी पूर्ति अकाल-राहत-कोषसे की जायेगी।...
जनता इस काममें इस तरह सहायता कर सकती है:
(क) खादी मँगाने के लिए उदारतापूर्वक आर्डर भेजकर;
(ख) निःशुल्क या अकाल-पीड़ित लोग जिन भावोंपर खरीद सकें, उन भावोंपर अनाजका वितरण करनेके लिए दान देकर या कताई-केन्द्रोंकी सहायता के लिए दान देकर, जिनके लिए आरम्भिक व्यय जुटाना जरूरी है।

च॰ राजगोपालाचारी

मैं समझता हूँ कि लोग इस अपीलके प्रति पूरा उत्साह दिखायेंगे। स्पष्ट है कि यह अपील जल्दबाजी में पूरे तथ्य एकत्र किये बिना लिखी गई है। परन्तु पिछला अनुभव बतलाता है कि ऐसे मामलोंमें सामान्य ढंगसे स्थिति बतला देने से स्थितिकी विभीषिका उतनी उजागर नहीं हो पाती जितनी कि मात्र तथ्य जुटानेसे हो जाती है। इसलिए पाठकोंको ब्योरेवार रिपोर्ट मिलने तक अपनी-अपनी थैलियोंके मुँह खोलनेसे अपने-अपने हाथोंको रोक नहीं रखना चाहिए। आशा है कि मैं बहुत शीघ्र मोटे तौरपर वहाँकी आवश्यकताओंका अनुमान दे सकूँगा। पाठकोंको यह भी याद रखना चाहिए कि उनकी सबसे अच्छी सहायता यही होगी कि वहाँ तैयार की जा रही और की जानेवाली खादीकी खपत में उनकी सहायता की जाये। वर्षाका अभाव तो सदा बना ही रहेगा, पर खादीका प्रचलन बढ़ जानेपर वहाँके लोगोंको ऐसी परिस्थिति में दूसरोंके दानका मोहताज नहीं बनना पड़ेगा। हाथ-कताईका काम राष्ट्रव्यापी आधारपर संगठित तो किया जा रहा है, पर आपत्कालीन परिस्थितियोंका