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४४७. ‘इकॉनॉमिक्स ऑफ खद्दर‘

‘इकॉनॉमिक्स ऑफ खद्दर’ (खद्दरका अर्थशास्त्र) के लेखक, श्री रिचर्ड बी॰ ग्रेग अत्यन्त अव्यवसायी अध्येता हैं। उन्होंने अपनी स्थापनाओंके समर्थनमें कुछ और सामग्री जुटाई है और अपनी प्रकाशित पुस्तक में मुद्रणकी कुछ अशुद्धियाँ भी खोज निकाली हैं। उन्होंने भूल-सुधार और परिवर्धनकी वह सामग्री[१] मुझे भेजी है। आशा है, श्री ग्रेगकी पुस्तकको पढ़नेवालों के लाभके लिए वह सामग्री यहाँ दी जानेका पाठक बुरा नहीं मानेंगे। उनको यह जानकर भी खुशी होगी कि अब वे पुस्तकके लिए एक विस्तृत सांकेतिका तैयार करने में लगे हुए हैं, जिससे कि खादीप्रेमियोंको अध्ययन और शोध-कार्यमें सुविधा हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-१०-१९२८
 

४४८. सन्देश: साहित्य परिषद्को

२६ अक्टूबर, १९२८

जहाँ आनन्दशंकरभाई अध्यक्ष हों वहाँ सफलता निश्चित ही है। मैं आशा करता हूँ कि साहित्य-सेवक गुजरात के गरीबोंको नहीं भूलेंगे और आनन्दशंकरभाई उन्हें भूलने भी नहीं देंगे।

[गुजराती से]
प्रजाबन्धु, २८-१०-१९२८
 

४४९. पत्र: स्वेन्स्का किर्केन्सको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२६ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आश्चर्य है कि आपको मेरा पत्र[२] अब तक नहीं मिला। मेरे पत्रका सारांश यही था कि आप स्वेडिश भाषामें ‘आत्मकथा’ को अनूदित कर

 
  1. यहाँ नहीं दी जा रही है।
  2. ८ जून, १९२८ का पत्र; देखिए खण्ड ३६।