४५६. पत्र: एस॰ गणेशन्को
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२६ अक्टूबर, १९२८
स्पेनसे आया एक पत्र भेज रहा हूँ। इनको अपेक्षित सूचना भेजनेकी कृपा कीजिए और पुस्तकें अग्रिम मूल्य मिल जानेपर ही भेजिएगा।
श्री ग्रेग यहीं हैं। उनकी शिकायत है कि आपने उनको पत्र ही नहीं लिखा, यहाँतक कि व्यावसायिक पूछताछके उत्तरमें भी नहीं। उनका कहना है कि आपने श्री राय तकको शान्तिनिकेतन में पुस्तककी प्रति नहीं भेजी। अब मैंने श्री रायको यहींसे एक प्रति भिजवा दी है। इतनी लापरवाही क्यों?
भारतीके गीतोंके सिलसिले में आपने एक पत्र लिखा था। मैंने आज ही तार[१] द्वारा उसका उत्तर भेजा है।
मैंने कुछ दिन पहले महाराजा नाभाको भी एक पत्र लिखा था।[२]
हृदयसे आपका,
१८ पाइक्रॉफ्ट्स रोड,
ट्रिप्लिकेन, मद्रास
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५७३) की माइक्रोफिल्मसे।
४५७. पत्र: मीठूबहन पेटिटको
२६ अक्टूबर, १९२८
तुम्हारा पत्र मेरे हाथ में आज ही आया है। मैंने तो ऐसा सुना है कि रामदास तुम्हारी [उक्त] आज्ञाका पालन पहलेसे ही कर रहा है। तथापि तुम्हारा पत्र मैं उसे भेज रहा हूँ।
तुमने बहुत बड़े कामका बोझ उठा लिया है, किन्तु तुम्हारे हाथमें यश है; इसलिए मैं आशा करता हूँ कि सब ठीक निबट जायेगा। अपनी तबीयतका खयाल तो रखती ही होओगी।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (जी॰ एन॰ २७०७) की फोटो-नकलसे।