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पत्र: के॰ एस॰ सुब्रह्मण्यम्को

 

सवा चार बजे शाम

संलग्न तार[१] हरजीवन कोटकने श्रीनगरसे भेजा था। यदि तुम नेपाल न जाओ, तो मैं चाहूँगा कि तुम कार्यक्रम बदलकर कश्मीर हो आओ। वहाँके पर्वतों और साथ ही वहाँ चलनेवाले खादी-कार्यको देखनेके लिए तुम्हें वहाँ जाना चाहिए।

पण्डित मोतीलालजी आज यहीं है।
मैं नवम्बरके अन्तिम सप्ताह में वर्धा जानेकी सोच रहा हूँ।
स्नेह।

बापू

मूल अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१७) से। सौजन्य: मीराबहन; जी॰ एन॰ ८२०७ से भी।

 

४६०. पत्र के॰ एस॰ सुब्रह्मण्यम्को

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२७ अक्टूबर, १९२८

प्रिय सुब्रह्मण्यम्,

आपका पत्र मिला। परिषद्के[२] सदस्योंसे बातचीत किये बिना मैं कोई भी सलाह नहीं दे सकता। हाँ, मुझे यह जरूर लगता है कि पण्डित जवाहरलाल नेहरूकी यह बात सही है कि अनेक अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण वे एजेन्सीके कामके लिए जितना चाहिए उतना समय नहीं दे पायेंगे।

आपका भेजा पण्डित जवाहरलालका पत्र मैं इसके साथ लौटा रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के॰ एस॰ सुब्रह्मण्यम्
अखिल भारतीय चरखा संघ, अहमदाबाद
३९५ कालवादेवी रोड, बम्बई

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १२७८४) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. २७ अक्टूबरके इस तारमें कहा गया था: “मैं चाहूँगा कि यदि सम्भव हो और आप अनुमति दें तो मीराबहन अपने दौरेमें श्रीनगरको शामिल कर लें।” इसपर गांधीजी ने यह टिप्पणी लिखी थी: "इनको ही लिखो, हरजीवन कोटक, अखिल भारतीय चरखा संघ डिपो, श्रीनगर” (सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१८)।
  2. अखिल भारतीय चरखा संघकी। सुब्रह्मण्यम्ने संघकी ओरसे सभी खादी संगठनोंको भेजे जानेवाले एक परिपत्रका मसविदा साथमें भेजा था। उसका आशय यह था कि कलकत्ता कांग्रेस में आयोजित की जानेवाली प्रदर्शनीकी नीतिके बारेमें संघ और कांग्रेस अधिवेशनकी स्वागत-समितिके बीच मतभेद पैदा हो जानेके कारण खादी संगठनोंको उस प्रदर्शनी में कोई हाथ नहीं बँटाना चाहिए।