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४६६. वौठाका मेला

यह मेला वौठा में हर कार्तिक पूर्णिमाको होता है। इसके सम्बन्धमें श्री डाह्याभाई पटेलने ताल्लुका समितिकी ओरसे एक सूचना निकाली है। यह नीचे दी जाती है:[१]

इसमें दो माँगे की गई हैं: एक स्वयंसेवकोंकी और दूसरी धनकी। मुझे आशा है कि उन्हें दोनों प्रकारकी सहायता अवश्य मिलेगी। श्री डाह्याभाईने यह सूचना भेजते हुए कहा है कि उन्हें प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी ओरसे ३००रु॰ की सहायता मिल चुकी है। इसके अतिरिक्त अन्य लोगोंसे अबतक केवल ३१ रु॰ मिले हैं। इस कार्य में कमसे-कम ५०० रु॰ खर्च होंगे। आशा है, शेष जो रकम अभी तक नहीं मिली है, वह मिल जायेगी। इतना रुपया खर्च करके लोगोंकी सेवा की जा सके, मैं इसे अच्छा समझता हूँ। मैंने यह भी देखा है कि सेवा-समितियाँ ऐसे अवसरों पर बहुत धन खर्च कर देती हैं।

जैसा कि सूचनामें कहा गया है, ऐसे मेलोंमें लोगोंको शुद्ध आनन्द मिलता है; किन्तु यह सदा सम्भव नहीं होता। डाह्याभाईने तो आदर्श बताया है। सेवकोंका कार्य ऐसे मेलोंमें शुद्धताकी रक्षा करना है। प्राय: यह देखा गया है कि मेलोंमें―

  1. मर्यादाका ध्यान नहीं रखा जाता;
  2. जुआ खेला जाता है;
  3. मारपीट हो जाती है;
  4. पाखण्डी लोग अपना ढोंग फैलाते हैं, और
  5. लोग अनेक प्रकारकी अखाद्य वस्तुएँ खाते हैं और ऐसी चीजें बेचते हैं जो बेचने योग्य नहीं होतीं।

हजारों लोगोंकी भीड़में इन सब अवांछनीय बातोंको एक-साथ रोक सकना असम्भव है। किन्तु यदि हर बार मेलेमें यह प्रयत्न किया जाये तो सुधार किया जा सकता है। ऐसे अवसरपर विदेशी कपड़ेके व्यापारी विदेशी कपड़ा बहुत बेचते हैं। इसके बदले खादीका प्रचार भलीभाँति किया जा सकता है। किन्तु यदि यहसब कार्य करना हो तो इसके लिए पहलेसे तैयारी की जानी चाहिए और स्वयंसेवक अच्छे, समझदार, त्यागी और पर्याप्त संख्या में होने चाहिए। ऐसी तैयारी हो तो इस प्रकारके मेले लोक-शिक्षण के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-१०-१९२८
 
  1. यहाँ नहीं दी जा रही है। इसमें एकत्रित तीर्थयात्रियोंके लिए लोगोंसे स्वयंसेवक के रूप में काम करने और धन देनेकी अपील की गई थी।