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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहे हैं, परन्तु आश्रमकी खेती रहे या न रहे, फिर भी मैं बन्दरोंका कभी नाश करूँगा ही नहीं, ऐसी प्रतिज्ञा करनेकी हिम्मत मुझमें आज तो नहीं है। मेरी इस विनम्र स्वीकृतिसे मित्र लोग मेरा त्याग कर दें तो मैं लाचार हो जाऊँगा और मैं उस त्यागको सहन करूँगा। परन्तु अहिंसा-सम्बन्धी अपनी कमजोरी अथवा अपूर्णताको छिपाकर किसीसे मैत्री रखनेकी मुझे इच्छा नहीं है। अपने विषय में मैं सिर्फ इतना ही जोर देकर कह सकता हूँ कि अहिंसादि महाव्रतोंको पहचानने तथा उनका मन, वचन तथा शरीरसे सम्पूर्ण पालन करनेका सतत प्रयत्न कर रहा हूँ। उस प्रयत्नमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली है, फिर भी मैं जानता हूँ कि इस दिशामें मुझे अभी बड़ी लम्बी मंजिल तय करनी है। अतः ये पत्र-लेखक यदि मेरी अपूर्णताको क्षम्य न गिनते हों तो फिर उनको सन्तुष्ट करनेका मेरे पास अन्य कोई उपाय नहीं है।

(२)

दूसरे सज्जन पूछते हैं:

मान लीजिए कि मेरे बड़े भाई भयंकर असह्य रोगसे कष्ट पा रहे हैं। और डॉक्टर लोग उनके जीवनको आशा छोड़ देते हैं। मैं भी मानता हूँ कि वे बचनेवाले नहीं हैं। ऐसी अवस्थामें क्या मुझे उनका प्राणहरण करना चाहिए?

प्राणहरण नहीं करने चाहिए, यही मेरा जवाब है। इस विषयमें जो प्रश्न आये हैं, उनसे मैं यह देखता हूँ कि पढ़नेवालों ने मेरे लेखको समझनेकी तकलीफ ही नहीं उठाई। जो दशा बछड़ेकी थी उसी स्थितिमें पहुँचे हुए मनुष्यके प्राणहरणका भी मैंने समर्थन किया है। इस समानताको पत्र-लेखक अपनी कठिनाई पेश करते वक्त भूल जाते हैं। वस्तुत: बछड़ेकी-सी स्थिति में मनुष्य कदाचित् ही पड़ता है। प्रथम तो यह कि उसका कद बछड़ेकी अपेक्षा छोटा है और इसलिए उसे इधर-उधर उठाना-बैठाना उतना मुश्किल काम नहीं है। दूसरे, वह बछड़ेके समान मूक प्राणी नहीं है, इसलिए ज्यादातर तो वह अपनी इच्छा भी प्रदर्शित कर सकता है। और बिना मर्जी किसीके भी प्राणहरण करने में अहिंसा है, ऐसा मैंने बछड़ा प्रकरणमें कहीं नहीं लिखा। बेहोशीकी हालत में भी मनुष्य के जीनेकी आशा हम कोई जल्दी नहीं छोड़ देते। फिर आशा छूट जानेपर भी सेवा करनेकी आशा और अवकाश तो असंख्य प्रसंगों में बना ही रहता है। इसलिए बछड़ेकी स्थितिको पहुँचा हुआ मनुष्य शायद ही कोई मिले। मनुष्यका उदाहरण तो मैंने इसलिए दिया था कि मनुष्य और बछड़ेके बीच अहिंसाकी दृष्टि से भेद हो ही नहीं सकता। जो न्याय बछड़ेपर घटता है वही मनुष्यपर भी घटता है। परन्तु मुझे आशा थी कि मनुष्य तथा बछड़ेकी तुलनासे सभी पाठक मनुष्य प्राणी और बछड़े के बीच जो स्वभाविक भेद है उसे समझ ही जायेंगे। प्राणहरणकी शर्तें मैं फिरसे गिना देता हूँ:

  1. रोग असाध्य हो।
  2. सभीने रोगीके जीनेकी आशा छोड़ दी हो।
  3. उसकी सेवा करना असम्भव हो।
  4. उसकी इच्छा जानना भी असम्भव हो।