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४६८. विद्यार्थियों से प्रश्नोत्तर[१]

भविष्यकी रचना

विद्यार्थियोंकी प्रश्नावलीमें से एक प्रश्न यह है:

हमारे देशकी भावी आर्थिक रचना आपके मतानुसार किन सिद्धान्तों पर ओर कैसी होनी चाहिए? उसमें वर्तमान बैंक, बीमा कम्पनियाँ और अन्य औद्योगिक संस्थाओंका क्या स्थान होगा?

इसका संक्षिप्त उत्तर यह है: इस देशकी और सारे विश्वकी आर्थिक रचना ऐसी होनी चाहिए कि जिससे एक भी प्राणी अन्न-वस्त्रके अभावसे दुखी न हो, अर्थात् सभीको अपने निर्वाहके लिए आवश्यक उद्यम मिलता रहे। और यदि हम सारे जगत्के लिए ऐसी स्थिति चाहते हों तो अन्न-वस्त्रादि उत्पन्न करनेके साधन प्रत्येक मनुष्यके पास होने ही चाहिए। किसीको भी यह लोभ नहीं रखना चाहिए कि दूसरेको हानि पहुँचाकर स्वयं फायदा उठाये। जैसे हवा और पानीपर सबका समान हक है अथवा होना चाहिए, वैसे ही अन्न-वस्त्रपर भी होना चाहिए। इसका इजारा किसी एक देश, जाति अथवा व्यापारिक संस्थाके पास हो तो वह न्याय नहीं, अन्याय है। इस महान् सिद्धान्तपर कार्य-रूपमें अमल नहीं होता और बहुधा यह विचारके रूप में भी स्वीकार नहीं किया जाता, इसीसे इस देश और जगत्के अन्य भागोंमें लोग अभावग्रस्त बने हुए हैं। इस परिस्थितिका निवारण करनेके लिए चरखा और खादीकी प्रवृत्तिका आयोजन हुआ है। मेरे सुझावके अनुसार आर्थिक रचना हो जानेपर भी बैंक तथा शायद बीमा कम्पनियाँ भी रहेंगी। परन्तु उन सबका रूपान्तर हो चुकेगा। आजकल इस देश में ये बैंक गरीबोंके लिए नहीं-जैसे ही हैं। अनेक तो भार-रूप हैं। बीमा कम्पनियोंकी उन्हें जरूरत ही नहीं है। मेरी कल्पित आदर्श स्थिति में बीमा कम्पनियोंका स्थान क्या होगा, सो मैं नहीं कह सकता। बैंक गरीबोंकी यत्किंचित् धरोहर सँभालनेवाली देशहितकी दृष्टिसे रची गई संस्थाएँ होंगी। सरकार द्वारा संचालित अनेक संस्थाओंके प्रति मुझे कोई भी मोह नहीं है; फिर भी उसके सेविंग्स बैंक गरीबोंको मदद करनेवाली संस्थाएँ कही जा सकती हैं। तथापि उनका लाभ भी मुख्यतः शहरों में रहनेवालों को ही मिलता है। परन्तु जबतक सरकार हमारा खजाना हिन्दुस्तानसे बाहर रखती है तबतक मैं इन सेविंग्स बैंकों को भी उपयोगी नहीं समझता। जो राज्य-पद्धति लोकहित के ही खातिर और उसकी सम्मतिसे नहीं रची गई वह मौका पड़नेपर भरोसा रखने लायक नहीं कही जा सकती। यदि देशमें

  1. गांधीजी ने गुजरात विद्यापीठके विद्यार्थियोंके अधिक सम्पर्कमें आनेकी इच्छासे उनके कुछ वर्ग लेना प्रारम्भ कर दिया था। वे इन वर्गोंमें हिन्दू स्वराज्य पढ़ाते थे। वर्ग प्रारम्भ होने से पहले विद्यार्थियोंने कुछ लिखित प्रश्न किये थे और गांधीजी ने उनमें से कुछ चुने हुए प्रश्नों के उत्तर नवजीवन में भी दिये थे। देखिए “टिप्पणियाँ”, २१-१०-१९२८।