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विद्यार्थियोंसे प्रश्नोत्तर

लड़ाई शुरू हो जाये तो सरकारकी मददसे चलनेवाले तमाम बैंक निकम्मे गिने जा सकते हैं। क्योंकि उनमें जमा किया गया रुपया लोगोंके विरुद्ध काममें लाया जा सकता है। यह जोखिम चाहे अनिवार्य मान ली जाये, फिर भी इसे समझ करके ही सब कोई अपना रुपया सरकारी बैंकोंमें जमा कराते हैं; इस आधारपर कहा जा सकता है कि जो सरकारी बैंकोंमें अपना रुपया जमा कराते हैं वे सरकारकी जड़ मजबूत करते हैं। हम ऐसे काम करते हुए भी उसके नतीजेको समझें और जानें, यह आवश्यक है।

परदेशी बनाम स्वदेशी

विद्यापीठके विद्यार्थियोंकी प्रश्नावलीमें से एक अन्य प्रश्न यह है:

वस्त्रके सिवा विदेशसे आनेवाली चीजोंके व्यापारके विषयमे आपकी क्या राय है? इनमें से किन-किन चीजोंका व्यापार आपकी दृष्टि में तत्काल बन्द हो जाना चाहिए? भविष्यमें इसका क्या स्वरूप हो?

वस्त्रके सिवा अन्य विदेशी चीजोंके बारेमें मैं तटस्थ हूँ, ऐसा कहना चाहिए। कोई चीज़ केवल विदेशी होनेके कारण त्याज्य है, मेरी धर्मपोथीमें ऐसा कहीं भी लिखा नहीं है। मेरी धर्मपोथीमें यह लिखा है: स्वदेशको जो हानिकर हों, ऐसी तमाम विदेशी वस्तुएँ त्याज्य हैं। अर्थात् जो चीज काफी मिकदारमें हम अपने देशमें पैदा कर सकते हों उसे विदेशसे कभी नहीं मँगवाना चाहिए, जैसे गेहूँ। आस्ट्रेलियाका गेहूँ विशेष अच्छा है, इसलिए उसे मँगवाना और देशके गेहूँका त्याग करना मैं पाप मानता हूँ। परन्तु यदि ‘ओटमील’ की आवश्यकता सिद्ध हो जाये तो उसे स्कॉटलैंडसे मँगवानेमें मुझे कुछ भी संकोच नहीं होगा, क्योंकि हमारे यहाँ ‘ओटमील’ की पैदावार नहीं होती; अर्थात् द्वेष-भावके कारण विदेशी वस्तुका त्याग करना चाहिए, मैं इस पक्षमें नहीं हूँ। हमारे देशमें चमड़ा बहुत तैयार होता है। वह चाहे थोड़ा हलका ही क्यों न हो, फिर भी उसके जूते काममें लाना ही मैं उचित समझता हूँ। विदेशी जूते अधिक अच्छे और अधिक सस्ते मिलते हों फिर भी उनको मैं त्याज्य गिनता हूँ। हिन्दुस्तानमें शक्कर और गुड़ बहुत पैदा होता है। उस हालतमें विदेशी शक्कर अथवा खाँडको दाखिल करना मैं दोष समझता हूँ। इससे देखा जा सकता है कि विदेशी होनेसे जो त्याज्य हैं, ऐसी सभी वस्तुओंकी सूची देना मेरे लिए मुश्किल है। प्रत्येक वस्तुके विषयमें मैंने ऊपर जो सामान्य नियम बतलाया है उसीसे अपना व्यवहार-निर्णय कर सकते हैं। इस सम्बन्धमें आज हम जिस नीतिका प्रचार कर रहे हैं, वही मैं भविष्यमें भी चाहूँगा, बशर्ते कि उन चीजोंकी पैदावारके बारेमें हमारी स्थिति आजकी जैसी ही रहे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-१०-१९२८
 
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