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४६९. भाषण: नवीन गुजराती शाला अहमदाबादम,

२८ अक्टूबर, १९२८

इस शालाकी स्थापनाका श्रेय भाई इन्दुलाल याज्ञिकको है। यदि इस शालाके साथ हम भाई इन्दुलालके नामका स्मरण न करें तो अपना कर्त्तव्य करनेमें चूकेंगे और कृतघ्न ठहरेंगे। गुजरातमें लोगोंको सार्वजनिक प्रवृत्तियोंमें रस लेनेके लिए आकर्षित करने में और इन प्रवृत्तियोंको बढ़ानेमें भाई इन्दुलालका बड़ा योग है। इसे हम भूल नहीं सकते। यह शाला उन्हींके प्रयत्नोंका फल है। शिक्षकोंने इस शालाको सफलतापूर्वक चलाया है, इसके लिए वे धन्यवादके पात्र हैं। शालाके आचार्यने विद्यापीठके साथ शालाके सम्बन्धका उल्लेख किया। विद्यापीठके कार्यवाहक मण्डलसे शालाका सम्बन्ध नहीं है। किन्तु मेरा दुःखद अनुभव है कि विद्यापीठ और ऐसी अन्य संस्थाओंके कार्यक्षेत्रको यदि हम सीमित न करें तो वे अच्छी तरह नहीं चल पातीं। विद्यापीठका कार्यक्षेत्र आजकल कुछ छोटा कर दिया गया है। इसका उद्देश्य उसे आगे बढ़ाना ही है, पीछे हटाना नहीं। मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि जो भी शालाएँ राष्ट्रकी सेवा कर रही हैं उनकी तनिक भी हानि नहीं होने दी जायेगी। विद्यापीठ गुजरातमें चलनेवाली शिक्षाकी प्रवृत्तियोंका पोषण करनेके लिए है। आजकल वह हरएक शालाको स्वावलम्बी बनानेका तथा उनमें जो शिथिलता तथा आलस्य आ गया है उसे दूर करनेका प्रयत्न कर रहा है। इस शालाके लिए तो शिथिलता और आलस्यका कोई डर है ही नहीं, यदि ऐसा कोई डर होता तो मैं यहाँ आता ही नहीं। यहाँके शिक्षकों और बालकोंसे मैं बहुत-कुछ करनेकी आशा रखता हूँ। बलिदानके विषयमें तुमने नाटकके रूपमें एक बहुत सुन्दर संवाद प्रस्तुत किया। लूथरने स्वतन्त्रताके लिए अपना बलिदान दिया। राष्ट्रीय शालाओंकी अभिवृद्धिके लिए इसी तरह मरणशय्यापर सोनेकी तैयारी करनेकी आवश्यकता है, फिर भले हमें मृत्युको भेंटना पड़े या न पड़े। हम आरम्भशूर हैं। की हुई प्रतिज्ञाओंको बादमें छोड़ देते हैं, क्योंकि हमें अपने कार्यमें श्रद्धा नहीं है। जबतक हम लोगोंमें श्रद्धाके अभावका यह दोष रहेगा तबतक हम दुनिया में भारतकी जो शान कायम करना चाहते हैं वह नहीं कर सकते।

स्वतन्त्रताकी देवी तो मानों मृत्युकी देवी है। वह मुँह खोले बैठी हुई है और हमें उसमें प्रवेश करनेका निमन्त्रण दे रही है। यदि हम उसके लिए तैयार नहीं हैं तो हमें वांछित वस्तु नहीं मिल सकती। तुम लोग खेलो-कूदो और अपने शरीर तथा मनको बलवान बनाओ, यह बहुत अच्छी बात है। किन्तु राष्ट्रीय शालाओं और सरकारी स्कूलोंमें जो बुनियादी भेद है, उसे तुम मत भूलना। सरकारी स्कूलों में मिलनेवाली शिक्षा, सम्भव है, अच्छी हो, किन्तु एक चीज वह नहीं दे सकती। मैं तो आज भी घोषणापूर्वक यही कहता हूँ कि सरकारी स्कूल हमारे लिए त्याज्य