पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/४६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३५
पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको

हैं। तुम अपनी इस शालासे जो भी विद्या प्राप्त करो, यहाँ रहते हुए जो भी शारीरिक बल प्राप्त करो वह सब भारत-माताके चरणोंमें अर्पित करनेका संकल्प करना। इस शालासे राष्ट्रप्रेमकी शिक्षाका ऐसा प्रसार होना चाहिए कि हरएक विद्यार्थी यह निश्चय करे कि बड़ा होनेपर वह भारतकी सेवा करेगा। सत्य और अहिंसाका पालन करते हुए यदि तुम भारतकी सेवा करोगे तो उसमें कुटुम्बकी सेवा अपने-आप हो जायेगी। मैं बालकोंको आशीर्वाद देता हूँ और शिक्षकोंसे कहता हूँ कि आपने यहाँ जिन आदर्शोंको स्वीकार किया है उन्हें अपने आचरण में पूरी तरह उतारिएगा। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो विद्यार्थी उन्हें कदापि आत्मसात् नहीं कर सकते।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, ४-११-१९२८
 

४७०. पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको

मौनवार [२९ अक्टूबर, १९२८ को या उसके पूर्व][१]

चि॰ शान्तिकुमार,

तुम्हारा पत्र मिला। स्वदेशी संगठनका मसौदा पढ़कर मुझे निराशा हुई। इसमें मुझे व्यापार-वृत्तिकी गन्ध ही मिली। किन्तु एक प्रकारसे जो-कुछ हो रहा है वह ठीक है। इस मसौदेके द्वारा मिल-मालिकोंका सही रूप सामने उभर आता है। फिर, इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि हम जैसे हैं वैसे ही दिखाई दें।

मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि यदि तुम उससे अलग रह सको तो अलग रहना। यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि भाई जयसुखलाल इसमें पड़े हैं। यदि तुम यह पत्र उन्हें या ऐसे किसी भी व्यक्तिको, जो मेरे दृष्टिकोणको समझ सके, दिखाना चाहो तो दिखा सकते हो।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४७०६) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य: शान्तिकुमार मोरारजी
 
  1. डाककी मुहरसे।