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४७१. पत्र: मीराबहनको

[२९ अक्टूबर, १९२८][१]

चि॰ मीरा,

छीलनेके लिए सब्जियाँ ठीक की जा रही हैं, तबतक थोड़ा समय मुझे खाली मिल गया है।[२] तुम बिहारमें ही हो, तो मैं सोच रहा हूँ कि अब तुम मल्खाचकके खादी-कार्यके बारेमें क्या करोगी। कृष्णदास भी वहीं है। ठीक वही करना जिसकी प्रेरणा अन्दरसे मिले। मैं तो सिर्फ वस्तु-स्थिति बतला रहा हूँ। राजेन्द्रबाबू शायद न चाहें कि तुम वहाँ जाओ, क्योंकि अखिल भारतीय चरखा संघसे उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।

छोटेलालजी की डबल रोटीका काम अच्छी प्रगति कर रहा है।[३] और रसोईका काम भी काफी सरल बन गया है। यह सब तो तुम लौटनेपर खुद ही देखोगी। देवदास और जामियाके साथ सम्पर्क बनाये रखना।

स्नह।

बापू

[पुनश्च:]

यह तो तुमको बतलाना ही चाहिए कि मैं अपना धुनाईका काम स्वयं करने लगा हूँ। मैंने मध्यम धुनकीसे काम शुरू किया है।

बापू

श्रीमती मीराबाई
खादी-भण्डार
मुजफ्फरपुर, बिहार
अंग्रेजी जी॰ एन॰ ८२०९ से; तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५३१९) से भी।
सौजन्य: मीराबहन
 
  1. डाककी मुहरसे।
  2. बापूज़ लेटर्स टु मीरामें मीराबहन लिखती हैं: “सम्मिलित भोजनालयके लिए सब्जियाँ काटने छीलनेके काममें गांधीजी भाग लिया करते थे।”
  3. “छोटेलालजी ईंटोंका चूल्हा बनाने में सफल हुए थे और उन्होंने खमीरका उपयोग किये बिना डबल रोटी तैयार करनेको कला सीख ली थी” (मीराबहन)।