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१३. पत्र: जोधपुर राज्यके मन्त्रीको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१ जुलाई, १९२८

प्रिय महोदय,

संलग्न पत्र[१] मुझे प्रकाशनार्थ भेजा गया है। लेकिन राज्यकी ओरसे इसका कोई उत्तर पाये बिना मैं इसे नहीं छापना चाहूँगा। यदि आप एक छोटा-सा उत्तर[२] भेजनेकी कृपा करें तो आभारी होऊँगा।

इस पत्रकी प्राप्ति सूचित करते समय संलग्न पत्र लौटा देनेकी कृपा करें।

हृदयसे आपका,

संलग्न: १० सफे

अंग्रेजी (एस० एन० १२३९६) की माइक्रोफिल्मसे ।

१४. तार : जमनादास गांधोको

साबरमती
२ जुलाई, १९२८

जमनादास गांधी
मिडल स्कूलके सामने
राजकोट

दो दिनोंके लिए शीघ्र आ जाओ।

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ८६९८) से।
सौजन्य: नारणदास गांधी

 

  1. देखिए पिछले पृष्ठकी पा॰ टि॰ २।
  2. अपने ५ जुलाई, १९२८ के पत्रमें मन्त्रीने लिखा था: "राज्यके स्थायी आदेशको भंग करके दो मुसलमान कुरबानीके एक बकरेको एक खुली सड़कसे होकर लिये जा रहे थे। उस सड़कके आसपास रूढ़िवादी हिन्दुओंकी बस्ती है। इस राज्यके हिन्दू बहुत समयसे ऐसा करते आ रहे हैं कि जब-कभी उनके इलाकेसे कुरबानीके किसी बकरेको खुले आम ले जाया जाता है, वे उसे रोक रखते हैं और उसके कान में लोहेका छल्ला ढालकर उसे अमर करार दे देते हैं और फिर जीवन-भर उसे खिलाते-पिलाते हैं। उस बकरेको भी हिन्दुओंने उपर्युक्त परिस्थितियोंमें ही रोका और उसे उक्त रीतिसे अमर करार देकर पुलिसके संरक्षण में सौंप दिया, क्योंकि मुसलमान लोग उनके इस धार्मिक व्यवहारसे बहुत उत्तेजित हो गये थे। पुलिसने बकरेको सिटी पुलिस स्टेशन में रखा, लेकिन कोई ३,००० मुसलमानोंने स्टेशनको घेर लिया और मार-काटका डर दिखा बकरेको लौटा देनेको कहा। लाठियों और तलवारोंसे लैस इन आक्रमणकारियोंने पुलिस स्टेशनकी दीवारोंको चारों ओरसे बिलकुल घेर लिया और वे पुलिसपर धावा ही बोलनेवाले थे कि उन्हें भगाने के लिए सेनाको बुला लिया गया। कोई भी हताहत नहीं हुआ।" (एस॰ एन॰ १२३९७-ए)।