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४७२. पत्र: महादेव देसाईको

मौनवार, २९ अक्टूबर, १९२८

चि॰ महादेव,

तुम्हारा पत्र मिला, किन्तु आत्मकथा [की किस्त] नहीं मिली। इस बातका भरोसा तो है कि कलतक मिल जायेगी, किन्तु प्यारेलालने उसका अनुवाद करनेकी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली है। उसकी तबीयत अब ठीक है। कुसुम ठीक तो है, किन्तु अभी बिछौना नहीं छोड़ सकी है। मेरी गाड़ी तो भगवान्के भरोसे चलती ही रहती है न? क्या आजतक किसीका काम अटका है? इसलिए मेरा काम चल गया, इसमें कोई खास बात नहीं है।

यह अच्छा ही हुआ कि भूलाभाई तुरन्त सहमत हो गये।[१] यदि ऐण्डर्सन आदिकी रिपोर्ट रद हुई मान ली जाये तो जिम्मेवारी हमपर नहीं आती, बल्कि वृद्धिके औचित्यको सिद्ध करनेकी जिम्मेवारी सरकारपर है।

तुम्हारे नाम आया एक पत्र इसके साथ भेज रहा हूँ। मैं हस्ताक्षर पढ़ नहीं सका। ‘ब्रेड एन्ड ब्रेड मेकिंग’ (रोटी और रोटी बनाना) के बारेमें भूल तो नहीं गये।

परीक्षितलाल ‘अन्त्यज सर्व-संग्रह’ के बारेमें जानना चाहते हैं कि क्या उक्त पुस्तक तुमने उन्हें दी थी?

बा खटियासे उठ खड़ी हुई है। वह बहुत कमजोर तो है ही और कहा जा सकता है कि बहुत दुबली हो गई है। राधा और सन्तोक राजकोट गई हैं और दिवाली के बाद वापस लौटेंगी। मीराबाई मुजफ्फरपुर पहुँच गई है।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

मोतीलालजी कल आये थे और आज वापस लौट गये। हम निरन्तर कांग्रेसके बारेमें ही बातें करते रहे। जुगतरामको प्रस्तावना अलगसे भेज रहा हूँ।

गुजराती (एस॰ एन॰ ११४४६) की फोटो-नकलसे।

 
  1. देखिए “पत्र: डी॰ एन॰ बहादुरजीको”, २७-१०-१९२८।