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४७३. तार: घनश्यामदास बिड़लाको[१]

अहमदाबाद
३० अक्टूबर, १९२८

घनश्यामदास बिड़ला
बिड़ला पार्क, कलकत्ता

महादेव बारडोली में है। दक्षिण आफ्रिकी पत्रकारोंको आमन्त्रित करना सामान्यतया ठीक कदम होगा।

गांधी

मूल अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ७८७८) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

४७४. पत्र: मीराबहनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
३१ अक्टूबर, १९२८

चि॰ मीरा,

तुम्हारे दो पत्र एक साथ मिले―एक आश्रमके बारेमें और दूसरा तुम्हारी मेरठ-यात्राके वृत्तान्तका। मैंने तुमको मुजफ्फरपुरके पतेपर दो पत्र लिखे थे, पहला रविवार और दूसरा सोमवारको।

समझमें नहीं आता कि समाचारपत्रोंमें आश्रमके बारेमें समाचार कैसे छप जाते हैं। खैर, उनमें से अधिकांश बिलकुल मनगढन्त होते हैं। यदि कोई भारी परिवर्तन होता मैं तुमको अवश्य लिख देता। नामके परिवर्तनके बारेमें भी मैंने अखबारमें कुछ नहीं लिखा, इसलिए कि महादेव और दूसरे लोगोंका आग्रह था कि समाचारपत्रोंमें इस बातकी भी सूचना नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन अब तो जाहिर है, लिखना ही पड़ेगा। पर उद्योग मन्दिरकी समिति ब्रह्मचर्य से सम्बन्धित नियममें कोई ढिलाई नहीं करेगी। अतः ब्रह्मचर्यसे सम्बन्धित आधारभूत नियम और अन्य सभी आधारभूत नियम तो ज्यों-के-त्यों रहेंगे। इसी प्रकार सामूहिक भोजनालय भी कमसे-कम एक वर्षतक तो चालू रहेगा ही। वर्षके अन्तमें ही इस अवधिके भीतर हुए

 
  1. वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीके इस प्रस्तावके बारेमें कि दक्षिण आफ्रिकाके पत्रकारोंको भारतीय संस्कृतिसे परिचित कराने के लिए उनका एक दल भारतमें आमन्त्रित किया जाये, भारत सरकारने घ॰ दा॰ बिड़लाकी राय पूछी थी। बिड़लाने महादेव देसाईके नाम अपने २७ अक्टूबरके पत्रमें उनसे प्रस्ताव के बारेमें गांधीजी को राय लिखनेका अनुरोध किया था।