अनुभवको ध्यान में रखते हुए इस प्रश्न पर पुनविचार किया जायेगा। भोजनालय बड़े मजेमें चल रहा है।
मेरठके गांधी आश्रमके लोग चाहते हैं कि २१ नवम्बरको होनेवाले मेलेके अवसरपर धुनाई और ऐसी ही अन्य क्रियाओंका प्रदर्शन भी किया जाना चाहिए। तुम यदि नेपाल नहीं जा रही हो, तो अच्छा यही रहेगा कि तुम कार्यक्रम तबदील कर लो। और इस मेलेमें पहुँचकर इन लोगोंकी जितनी भी बन सके सहायता करो और इसके बाद कश्मीर चली जाओ। मैं अन्य कारणोंके अलावा इसलिए भी चाहता हूँ कि तुम कश्मीर जाओ कि तुम वहाँके खादी-कार्यको देखो। यह तभी होगा जब तुम ऐसे समय जाओ जब वहाँ खादी-कार्य चल रहा हो। देवदास, रसिक और नवीनकी सहायतासे तुम वहाँ खादी तैयार करने की प्रक्रियाओंके प्रदर्शनका आयोजन कर ही सकती हो। तब फिर यहाँसे किसीको भेजनेकी जरूरत नहीं रह जायेगी, क्योंकि हम तो वैसे ही आजकल कार्यकर्ताओंकी कमीके कारण आश्रमसे किसीको भेजनेमें असुविधा महसूस कर रहे हैं। लेकिन मेरठवालों की सहायता मैं जरूर करना चाहता हूँ। मैंने अपने विचार बतला दिये हैं। अब तुम अपनी सुविधाके अनुसार जो भी ज्यादा ठीक समझो, करना। मैंने मजमूदारको कोई उम्मीद नहीं बँधाई है। पत्र मजमूदारने ही लिखा था।
सस्नेह,
बापू
मार्फत―खादी-भण्डार
मुजफ्फरपुर (बिहार)
- अंग्रेजी जी॰ एन॰ ८२१० से; तथा सी॰ डब्ल्यू॰ ५३२० से भी।
- सौजन्य: मीराबहन
४७५. पत्र: आर॰ कृष्णय्यरको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
३१ अक्बटूर, १९२८
सुब्बैयाके नाम आपका पत्र मैंने देख लिया है। मैं बम्बई होता हुआ वर्धा तो शायद नहीं जा सकूँगा। बारडोलीवाला रास्ता ही सबसे सीधा और कम खर्चीला है। इसलिए आप चन्देकी जमा की हुई राशि आश्रमके पतेपर ही भेज दें, क्योंकि मैं ठीक-ठीक नहीं जानता कि बम्बई कब पहुँचूँगा।
हृदयसे आपका,
८२/२४, मिरेण्डा बिल्डिंग, दादर
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५७७) की माइक्रोफिल्मसे।