४७६. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको
३१ अक्तूबर, १९२८
आपका पत्र मिला। विपिन बाबूकी बात मैं समझ रहा हूँ।[१] परन्तु मेरे दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं आया। मेरे मनमें यह सारी चीज दिन-दिन अधिक स्पष्ट होती जा रही है: हमें जीवनको ही सब-कुछ मानना और मृत्युको निस्सार समझना भूलना चाहिए। सचमुच, हमें मृत्युको भी आनन्ददायक मानना सीख लेना चाहिए।
प्रदर्शनी यदि उसी तरह की होने जा रही हो जैसी आप कहते हैं[२] तो उससे हमारा दूर रहना ही अच्छा होगा।
आपने इस पत्रमें तारिणीके स्वास्थ्यके सम्बन्धमें कुछ भी नहीं लिखा।
हृदयसे आपका,
खादी प्रतिष्ठान
सोदपुर
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५७८) की फोटो-नकलसे।
४७७. पत्र: जे॰ येसुथासेनको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
३१ अक्टूबर, १९२८
आपका पत्र मिला। तीव्र वेदनाके क्षणोंमें सभी लोगोंको एक सर्वव्यापी शक्तिके अस्तित्वका भान नहीं होता और न उन्हें अपने भीतर उसे शान्तिपूर्वक सह जानेके बलका ही अनुभव होता है। किन्तु, कुछ लोगोंको निस्सन्देह ऐसी अनुभूति होती है। बात बिलकुल ठीक है कि पीड़ा जब सहिष्णुताकी सीमा लांघ जाती है तब हमारा
- ↑ सतीशचन्द्र दासगुप्तने अपने पत्रके साथ विपिनचन्द्र पालके एक लेखकी कतरन भेजी थी। इंग्लिश मैन में छपे उस लेख में पालने बछड़के सम्बन्ध में चलनेवाली बहसके सिलसिलेमें गांधीजी द्वारा व्यक्त विचारोंकी आलोचना की थी।
- ↑ कलकत्ता कांग्रेसकी स्वागत समितिने इस आशयका एक प्रस्ताव स्वीकृत किया था कि कलकत्ताके आगामी कांग्रेस अधिवेशनके दौरान होनेवाली प्रदर्शनीमें भारतीय मिलोंके बने सूती वस्त्र और कढ़े हुए विदेशी वस्त्र भी रखे जा सकेंगे।