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पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको

सिरजनहार मृत्युके जरिये उस पीड़ाको समाप्त कर देता है। सहिष्णुताकी सीमा व्यक्तिपर निर्भर करती है और यदि हम प्रत्येक सम्भावित अवस्थामें मृत्युको भयावह मानकर ही न चलें तो कुछ ऐसी सुनिश्चित परिस्थितियाँ भी हो सकती हैं जिनमें हम अहिंसाके नियमोंका उल्लंघन किये बिना भी मृत्युका वरण कर सकते हैं।

हृदयसे आपका,

जे॰ येसुथासेन महोदय
बैलमोंट
कुनूर, नीलगिरि

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५७९) की फोटो-नकलसे।

 

४७८. पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको

३१ अक्टूबर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरा पक्का इरादा था कि मैं दिसम्बरमें फेडरेशनके सम्मेलनके दौरान आप सबके साथ समय बितानेका सुख प्राप्त करूँ।[१] लेकिन मैं देख रहा हूँ कि वैसा नहीं हो पायेगा। मैं अत्यन्त दुर्बल हो गया हूँ, इसलिए मैंने जमना-लालजी का यह आमन्त्रण स्वीकार कर लिया है कि मैं कांग्रेस-सप्ताहके दौरान कलकत्ता जानेसे पहले पूरे एक महीने वर्धामें रहकर आराम करूँ। आप मुझे क्षमा करनेकी कृपा करें।

हृदयसे आपका,

रेवरेंड ई॰ सी॰ डेविक
५, रसेल स्ट्रीट
कलकत्ता

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५८०) की फोटो-नकलसे।

 
  1. देखिए “पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको”, २१-९-१९२८।