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परिशिष्ट
द्वारा संघ सरकारको आश्वस्त करता है कि वह भारतीय और संघीय सरकारोंके बीच केप टाउनमें हुए समझौतेका समर्थन करेगा और आम तौरपर तथा समझौतमें निहित भावना के अनुरूप उसका पालन करेगा और यह अधिवेशन सदाकी भाँति फिर घोषणा करता है कि वह संघमें भारतीयोंका अवैध प्रवास किसी भी रूपमें सहन नहीं करेगा।

इस आश्वासनको देखते हुए और संघमें भारत सरकारके प्रथम एजेंट के रूपमें परम सम्माननीय वी॰ एस॰ एस॰ शास्त्री, प्रिवी कौंसलरकी नियुक्तिके अवसर पर अपनी अनुकम्पा प्रदर्शित करनेके लिए, संघ सरकारने यह निर्णय करनेकी कृपा की है कि वह १९२७ के अधिनियम ३७ के खण्ड ५ द्वारा संशोधित रूपमें १९१३ के अधिनियम २२ के खण्ड १० की व्यवस्थाओंको उस भारतीय पर पूरा-पूरा लागू नहीं करेगी जो गृह-मन्त्रीको इस बातसे सन्तुष्ट कर देगा कि वह आरेंज फ्री स्टेटके अतिरिक्त संघके अन्य किसी प्रान्तमें ५ जुलाई, १९२४ से पहले प्रविष्ट हुआ था; किन्तु यह छूट निम्न व्यवस्थाओंके अधीन दी जायेगी:

(क) संघमें अवैध रूपसे प्रवेश कर चुकनेवाले प्रत्येक भारतीयको स्वयं ही या दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेस या उससे सम्बद्ध किसी संस्थाके जरिये एक प्रार्थनापत्र देना चाहिए, जो ट्रान्सवालमें प्रिटोरिया स्थित प्रवास तथा एशियाई कार्य-आयोगको और केप तथा नेटाल प्रान्तोंमें यथास्थिति केप टाउन तथा डर्बन-स्थित मुख्य प्रवास अधिकारियोंको दिया जाना चाहिए और वह इन अधिकारियों द्वारा माँगा गया सारा विवरण प्रस्तुत करेगा। ऐसा प्रार्थनापत्र उल्लिखित अधिकारियोंके पास १९२८ की पहली अक्टूबरको या इससे पहले पहुँच जाना चाहिए। जिन भारतीयोंके पास संघमें या संघके किसी प्रान्त में प्रवेश करने, निवास करने या बने रहनेका अधिकार देनेवाले ऐसे पंजीयन प्रमाणपत्र या अधिवास प्रमाणपत्र या अन्य दस्तावेज हों जो उन्होंने स्वयं या उनकी ओरसे पेश किये गये झूठे विवरणोंके आधार पर प्राप्त किये हों, उनको यहाँ पैरा (ख) में उल्लिखित संरक्षण प्रमाणपत्र या दस्तावेजोंको अपने पास रखनेके प्राधिकरणके लिए प्रार्थनापत्र देना चाहिए

(ख) इस बातसे सन्तुष्ट हो जाने पर कि प्रार्थी इस रियायतकी शर्तें पूरी करता है, मन्त्री आदेश देगा कि प्रार्थीको या तो विहित रूपमें संरक्षण प्रमाणपत्र दे दिया जाये या उसे अवैध रूपसे प्राप्त किये दस्तावेज अपने पास रखनेके लिए प्राधिकृत कर दिया जाये। इस रियायतकी शर्तें पूरी न करनेवाले किसी भी व्यक्तिका प्रार्थनापत्र स्वीकार नहीं किया जायेगा।

(ग) संरक्षण प्रमाणपत्र या पैरा (ख) के अन्तर्गत अपने पास रखनेके लिए प्राधिकृत दस्तावेज जिस भारतीयके पास होंगे उसके वे सभी अधिकार संरक्षित रहेंगे जिनका उपभोग वह १९२७ के अधिनियम ३७ प्रभावी होनेके दिन अर्थात् ५ जुलाई, १९२७ को कर रहा था और ऐसे व्यक्तिके बारेमें मान लिया जायेगा कि वह १९१३ के अधिनियम संख्या २२ के खण्ड २५ की शर्तों के मुताबिक ही तत्सम्बन्धी प्रान्तमें प्रविष्ट हुआ था, परन्तु यदि उस समय तक वह अपनी पत्नी तथा/या बच्चोंको संघमें नहीं