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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

बड़ी खुशी हुई यह जानकर कि आखिरकार आप संघके सदस्य वन हो गये। मगर जबतक आप 'क' वर्गकी सदस्यता न प्राप्त कर लेंगे, मुझे सन्तोष नहीं होगा। 'ख' वर्ग निश्चय ही आप-जैसोंके लिए नहीं है।[१]

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १३४५०) की फोटो-नकलसे।

 

२२. पत्र: बी॰ डब्ल्यू॰ टकरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
४ जुलाई, १९२८

 
प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपके पिछले पत्रोंमें तो बेशक ऐसा कुछ नहीं था जिसके लिए आप लज्जित हों। यद्यपि मैं आपके निष्कर्षको[२] स्वीकार नहीं कर सका, लेकिन आपकी आलोचनाके पीछे जो स्नेह छिपा हुआ है, उसे तो अवश्य समझता हूँ। डिपुटी कमिश्नरके प्रति आपने जो रवैया[३] अपनाया है, वह मुझे सही जान पड़ता है। सच पूछिए तो भारत-स्थित विदेशी मिशनोंका कार्य-व्यापार मुझे किसी भी तरह ठीक नहीं लगता। उनमें अपना काम निकालने और दुनियादारीकी प्रवृत्ति ज्यादा दिखाई देती है और कौन-सी चीज सही और धर्मसंगत है, इसकी चिन्ता बहुत कम दिखाई देती है। विदेशी मिशनों पर जो शर्तें थोपी गई हैं, उन्हें कोई धार्मिक संस्था कैसे स्वीकार कर सकती है? अंग्रेज मिशनरियोंका प्रयास तो साफ-साफ राजनैतिक उद्देश्यों

 

  1. तात्पर्य अखिल भारतीय चरखा संघकी सदस्यतासे है। संघके संविधानके अनुसार 'क' वर्गके सदस्योंके लिए हर महीने खुदका काता १,००० गज सूत जमा कराना और 'ख' वर्गके सदस्योंके लिए प्रतिवर्ष खुदका काता २,००० गज सूत चन्देके रूप में देना जरूरी था। देखिए खण्ड २८, पृष्ठ २४२।
  2. कलकत्ता के एक स्कूलसे सम्बन्धित अमेरिकी मिशनरी टकरने अपने २८ जूनके पत्र में लिखा था: "...अपने छिद्रान्वेषी रवैयेके लिए मैं हृदयसे लज्जित हूँ। ...उनमें से अधिकांश आलोचनाएँ मेरे स्वभावके दुर्बल पक्षका परिणाम थीं और उनमें मैंने अपने कुछ-एक ऐसे रवैयौंको सही साबित करनेका प्रयत्न किया जिनके सही होनेके बारे में खुद मेरे दिल और दिमागको बहुत शक है।..." (एस॰ एन॰ १३४४०)
  3. टकरने लिखा था कि "जब मैं श्री वेपर्स [डिपुटी कमिश्नर] से मिला तो उन्होंने मुझसे जो-कुछ कहा उसे सुनकर मैं बिलकुल चकित रह गया। उन्होंने बताया कि मैंने राजनीतिक सभाओंमें शामिल होकर अपराध किया है। ...ऐसी सभाओं में जाना अमेरिकाके विदेशी मिशन बोर्ड द्वारा उसके मिशनरियोंकी ओरसे दिये गये वचनके विरुद्ध है। ...यदि मैं ऐसी सभाओं में जाना बन्द नहीं करूंगा तो...हमारे स्कूलको सरकारकी ओरसे प्रति मास १७५ रुपयेका जो अनुदान मिलता है वह बन्द कर दिया जायेगा और सरकार मिशनरी बोर्डसे...मुझे वापस बुला लेने को कहेगी। ...मैं विशप फिशर और अमेरिकाके बोर्डके सेक्रेटरीको रिपोर्टसे अवगत करा चुका हूँ और मैंने कह दिया है कि मेरी इच्छा इस आदेशको माननेको नहीं है। यदि उन्होंने जोर डाला कि मैं सरकारकी इच्छाका पालन अवश्य करूँ तो फिर बोर्डसे त्यागपत्र दे देनेके अलावा मेरे सामने और कोई सम्मानजनक उपाप नहीं है।..."