पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मुझे भेजी है, उसमें कौन-सी बात अपमानजनक है। आपको पत्रकी भाषा अपमानजनक लगती है या उसमें लिखी कोई बात? इन दिनों मुझे मालूम नहीं रहता कि परिषद्की बैठकोंमें क्या होता है। इसलिए जब यथासमय प्रस्ताव मेरे पास भेजा गया तब उसमें मैंने जो कुछ देखा होगा, उसके अलावा दस हजार रुपयेकी मंजूरीके बारेमें मुझे कुछ भी मालूम नहीं है। लेकिन उसमें क्या देखा, यह अब मुझे याद नहीं है। जमनालालजी आश्रम में नहीं हैं। लेकिन एक ऐसे व्यक्तिकी हैसियतसे, जिसका इस मामलेसे कोई सरोकार नहीं है, मुझे न तो इस पत्रकी भाषा-शैलीमें और न इसमें लिखी बातोंमें ही कोई दोष नजर आता है। मान लीजिए चन्दा बिलकुल ही इकटठा न हो पाता और नब्बे हजार रुपयेके वादे, वादे-भर रह जाते तो क्या जमनालालजी आपको दस हजार रुपये दे पाते? मैं इतना जानता हूँ कि इस समय संघके पास फालतू पैसा नहीं है। मैं तो आपसे सावधानी और धीरज बरतनेकी ही अपेक्षा रखूंगा और चाहूँगा कि शंकालु दृष्टि न रखें। आखिरकार परिषद् के सामने कोई छोटा-मोटा काम तो है नहीं। परिषद्की निन्दा करते हुए प्रस्ताव पास करने के बजाय आपको उसकी कठिनाईको समझना चाहिए था और जहाँ वह गलती पर पाई जाती वहाँ उसकी गलतीको दुरुस्त कर देना चाहिए था। अगर आपकी जगह मैं होऊँ तो बिना कहे ही प्रस्ताव वापस ले लूं। लेकिन अगर आप समझते हों कि अब आपको किसी प्रकारकी सहायताकी जरूरत नहीं है और आपको ऐसा न लगता हो कि आपने जल्दबाजीमें निर्णय लिया है तो बेशक आप अपने प्रस्ताव पर दृढ़ रहें।

हृदयसे आपका,

डॉ॰ प्र॰ च॰ घोष
मन्त्री, अभय आश्रम
कुमिल्ला

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६३१-बी) की फोटो-नकलसे।