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२४. पत्र: नवाब मसूद जंग बहादुरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
४ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

कर्वे विश्वविद्यालयके दीक्षान्त भाषणकी प्रतिके लिए धन्यवाद। कुछ अखबारों में उस भाषणके कतिपय अंश छपे थे। मैंने अपने कामके लिए उनकी कतरनें तैयार करा ली थीं और शायद आपने 'यंग इंडिया' में देखा भी होगा कि आपके अभिभाषणकी विषय-वस्तु पर मैं पहले ही लिख[१] चुका हूँ। अब मैं क्षण-दो-क्षणका अवकाश मिलते ही पूरे अभिभाषणको पढ़नेका आनन्द लाभ करूँगा।

हृदयसे आपका,

नवाब मसूद जंग बहादुर
लोक-शिक्षा निदेशक
महाविभव निजामकी सरकार
हैदराबाद, दक्षिण

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४४९) की फोटो-नकलसे।

 

२५. विदेशी माध्यमका अभिशाप

अभी हालमें हैदराबाद राज्यके लोक-शिक्षा निदेशक नवाब मसूद जंग बहादुरने कर्वे महिला विश्वविद्यालय में देशी भाषाओंको शिक्षाका माध्यम बनानेके पक्षमें बहुत जोरदार दलील दी थी। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने उनकी दलीलका जवाब दिया है और एक भाईने उसकी कतरन मेरे पास उत्तर देनेके लिए भेजी है। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' का जवाब इस प्रकार है:

उनकी लिखी चीजोंमें जो कुछ भी महत्वपूर्ण और लाभदायक है वह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पाश्चात्य संस्कृतिका परिणाम है। ... साठके बजाय हम सौ साल पीछे जाकर देख सकते हैं, लेकिन तब भी हम यही पायेंगे कि राजा राममोहन रायसे लेकर महात्मा गांधी तक जिस भारतीयने भी किसी क्षेत्रमें कहने लायक कुछ उपलब्ध करके दिखाया है वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूपसे पाश्चात्य शिक्षा पद्धतिकी ही देन था या है।

इन उद्धरणोंमें भारत में उच्चतर शिक्षाके माध्यमके रूपमें अंग्रेजीके महत्व पर नहीं, बल्कि जिन लोगोंका उल्लेख किया गया है उनके लिए पाश्चात्य संस्कृतिके

 

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