पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/५८

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२६. हमारा तम्बाकूका खर्च

एक भाई कई तरहके सुधारोंमें रुचि रखते हैं। उन्होंने पूछा है कि तम्बाकू पर राष्ट्रको कितना खर्च करना पड़ता है। मैंने देखा है कि हम कच्चे तम्बाकू और सिगरेटोंके लिए प्रतिवर्ष २१३ लाख रुपये चुकाते हैं। यह खर्च प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। जहाँ १९२३ में साढ़े बारह लाख पौंड कच्चे तम्बाकूका आयात होता था वहाँ १९२७ में ५० लाख पौंडका आयात हुआ। इसी दरसे सिगरेटोंके आयातमें भी वृद्धि हुई। मैंने जिन सूत्रोंसे यह हवाला दिया है, यदि वे सही हैं तो हम अपने तम्बाकूका निर्यात बिलकुल नहीं करते। इसलिए हमारे यहाँ पैदा होनेवाली तम्बाकूकी फसलकी कीमत भी उपर्युक्त आँकड़ोंमें जोड़ देनी पड़ेगी। यदि बीड़ी-सिगरेट आदि पीनेवाला हर व्यक्ति अपनी यह गन्दी आदत छोड़ दे, यदि वह अपने मुँहको धुआँ छोड़नेवाली ऐसी चिमनी बनानेसे बाज आये जो उसकी साँसको दूषित करती है, उसके दाँतोंको नुकसान पहुँचाती और उसकी विवेकशक्तिको कुण्ठित करती है, और इस तरह होनेवाली बचतको किसी अच्छे राष्ट्रीय कामके लिए दे दे तो वह अपनी भी शोभा बढ़ायेगा और राष्ट्रकी भी।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ५-७-१९२८

 

२७. एक अमेरिकीको श्रद्धांजलि

बहुत-से अमेरिकी मित्र आश्रमको देखने आते हैं और कभी-कभी वे यहाँ ठहरते भी हैं। उन्हींमें से एकने श्रीमती मगनलाल गांधीको इस प्रकार लिखा है:[१]

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, ५-७-१९२८

 

  1. यहाँ इसका अनुवाद नहीं दिया जा रहा है। १९२५ में पत्र-लेखक दो दिन आश्रम में रुका था और उसने श्रीमती मगनलाल गांधीके आतिथ्यका सौभाग्य भी प्राप्त किया था। उन दो दिनोंको अपने जीवनके सौभाग्यपूर्ण दिन बताते हुए उसने स्वर्गीय श्री मगनलाल गांधीको श्रद्धांजलि अर्पित की थी। उसने लिखा था कि श्री मगनलाल गांधी एक अत्यन्त विरल व्यक्ति थे। वे यद्यपि एक सच्चे भारतीय थे, फिर भी उनका दृष्टिकोण इतना उदार था कि सम्पूर्ण मानव-समाज उनकी सहानुभूतिकी सीमामें आ जाता था। वे सत्याग्रहकी भावनाकी साक्षात् प्रतिमूर्ति थे और उनकी सारी प्रतिभा और योग्यता, उनका सम्पूर्ण जीवन उस परम उद्देश्य के लिए अर्पित था, जिसको पानेकी आकांक्षा प्रत्येक मनुष्यको होनी चाहिए। यद्यपि वे हमेशा धर्मकी दुहाई नहीं देते रहते थे और अत्यन्त व्यावहारिक व्यक्ति थे, फिर भी उनकी समस्त व्यावहारिकता, उनकी सभी सांसारिक प्रवृत्तियोंका स्रोत धर्मं हो था। पत्र-लेखकने श्रीमती मगनलाल गांधीकी सान्त्वना देते हुए यह भी लिखा था कि यद्यपि प्रशंसाके ये शब्द किसीके प्रियजनके विछोहके दुःखको कम नहीं कर सकते, फिर भी यह निश्चित है कि सबके कल्याणकी भावनासे ओत-प्रोत उनको आत्माका प्रभाव उस परिवेश में सदा बना रहेगा जिसमें वे रहते थे और सबसे बढ़कर तो आपको उन दो पुत्रियों और पुत्रके रूप में वे आपके साथ हैं, जो उनके कामको अपने हाथ में लेकर उसे आगे बढ़ायेंगे।