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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन किये हैं, इसलिए इस साल नये लोगोंको प्रवेश देनेका इरादा नहीं है। सब-कुछ जमने-जमानेमें अभी कुछ समय तो लगेगा ही।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी॰ रामचन्द्र राव
वस्त्र-विक्रेता
तुमकुर, मैसूर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४५८) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३४. पत्र: एम॰ पी॰ श्रीनिवासन्‌को

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
६ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरे विचारसे तो आप अपनी इच्छाके विरुद्ध विवाह करने को बाध्य नहीं हैं–अपने माता-पिताको प्रसन्न करनेके लिए भी नहीं। लेकिन यदि आपके पिता चाहते हों तो आप घर छोड़नेके लिए अवश्य बँधे हुए हैं। माता-पिताकी आज्ञा माननेकी एक सुनिश्चित सीमा है। जब आज्ञा नैतिक नियमोंके विरुद्ध हो तो अवज्ञा धर्म हो जाती है।

मुझे तो उपवासके सम्बन्धमें किसी ऐसी पुस्तककी जानकारी नहीं है जिससे आपको कोई लाभ हो सकता हो।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एम॰ पी॰ श्रीनिवासन्
उप-सम्पादक, तमिल 'स्वराज्य'
२, वल्लभ अग्रहारम्, तिरुवतीश्वरनपेठ
ट्रिप्लिकेन, मद्रास

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४५९) की माइक्रोफिल्मसे।